________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [315 स्थिति का निरूपण किया है। व्यंतर देवों ओर देवियों को जघन्य स्थिति तो एक समान दस हजार वर्ष की है, किन्तु उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर है / देवों की स्थिति एक पल्योपम किन्तु देवियों की अर्धपल्योपम प्रमाण है / ज्योतिष्क देवों की स्थिति 360. [1] जोतिसियाणं भंते ! देवाणं जाव / गोयमा ! जह० सातिरेगं अट्ठमागपलिमोवम उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समभहियं / जोइसोणं भंते ! देवोणं जाव गो० ! जह० अटुभागपलिग्रोवमं उक्कोसेणं अद्धपलिप्रोवम पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं / [390-1 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की बताई है ? [390-1 उ.] गौतम ! जघन्य कुछ अधिक पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की होती है। [प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल को बताई है ? / [] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति पल्योपम का पाठवां भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति पचास हजार वर्ष अधिक अर्थपल्योपम की होती है। [2] चंदविमाणाणं भंते ! देवाणं जाव जहन्नेणं च उभागपलिओवम उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्साहियं / चंदविमाणाणं भंते ! देवीणं जाव जहन्नेणं चउभागपलिओवम उक्को० अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहि अहियं / [390-2 प्र.] भगवन् ! चंद्रविमानों के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [390-2 उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है / [प्र.] भगवन् ! चंद्रविमानों को देवियों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? [उ.] गीतम ! जघन्य स्थिति पल्योषम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट स्थिति पचास हजार वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की होती है। [3] सूरविमाणाणं भंते ! देवाणं जाव जह० चउभागपलिओवमं उक्को० पलिग्रोवम वाससहस्साहियं / सूरविमाणाणं भंते ! देवोगं जाव जह० चउभागपलिओवम उक्को० अद्धपलिओवमं पंचहि वाससहिं अधियं / [390-3 प्र.] भगवन् ! सूर्यविमानों के देवों की स्थिति कितने काल को बताई है ? [390-3 उ.] गौतम ! जवन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थांश और उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष अधिक एक पल्पोपम को होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org