________________ 314] [अनुयोगद्वारसूत्र [3] गन्भवतियमणुस्साणं जाव जहानेणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं तिणि पलिओवमाई। अपज्जत्तयगब्भववतियमणुस्साणं जाव गो० ! जहं० अंतो० उक्कोसेणं अंतो०। पज्जत्तयगम्भवक्कंतियमणुस्साणं जाव गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुत्तूणाई। [388-3] गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यों की जघन्य स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की ही जानना चाहिए। पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यों की जघन्य स्थिति अन्तर्महुर्त की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून तीन पल्योपम प्रमाण है / विवेचन-सूत्र में मनुष्यगति के जीवों की प्रायुस्थिति का जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा निरूपण किया है। जम्बूद्वीप, धातकीखंड और अर्धपुष्करवरद्वीप मनुष्यक्षेत्र हैं। इतने क्षेत्र में ही मनुष्यों का निवास है / ये द्वीप अनेक खंडों (भरत आदि क्षेत्रों) में विभक्त हैं। भरत, ऐ रवत तथा देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर विदेह क्षेत्र में कालपरिवर्तन के अनुसार अकर्मभूमि रूप अवस्था भी होती है और कर्मभूमि रूप भी। यहाँ जो मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की बताई है वह उत्तम भोगभूमि क्षेत्र देवकुरु और उत्तरकुरु की अपेक्षा जानना चाहिये। ये दोनों विदेहक्षेत्रान्तर्वर्ती स्थानविशेष हैं। यहाँ सदैव उत्तम भोगभूमि रूप स्थिति रहती है और कालापेक्षया सुषमासुषमा काल प्रवर्तमान रहता है। व्यंतर देवों की स्थिति 386. वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उवकोसेणं पलिओवमं / वाणमंतरीणं भंते ! देवीणं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं अद्धपलिनोवमं / / [389 प्र.] भगवन ! वाणव्यंतर देवों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? [उ. 389] गौतम ! जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की होती है। [प्र.] भगवन् ! वाणध्यंतरों की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [उ. ] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति अर्धपल्योपम की होती है। विवेचन--उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में व्यंतर देव निकाय के देव-देवियों की जघन्य और उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org