________________ 312] [अनुयोगद्वारसूत्र यहाँ सामान्य से तथा पृथक्-पृथक भेदों की अपेक्षा जो जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण बताया है, उसमें जघन्य से ऊपर और उत्कृष्ट काल से न्यून सभी स्थितियां मध्यम स्थितियां कहलाती हैं / जिनके अनेक भेद होते हैं / खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचों की स्थिति [4] खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केतिकालं ठिती पन्नत्ता ? गो० ! जह० अंतो० उक्को० पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं / सम्मुच्छिमखहयर० जाव गो० ! जह० अंतो० उक्को० बावरिं वाससहस्साई। अपज्जत्तयसम्मुच्छिमखह्यर० जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं अंतो० / पज्जतगसम्मुच्छिमखह्यर० जाव गोतमा ! जह० अंतो० उक्कोसेणं बावरि वाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। गम्भवक्कंतियखयरपंचेदियतिरिक्ख० जाव गो० ! जह• अंतो० उक्को० पलिनोवमस्स असंखेज्जइभागं / अपज्जत्तयगम्भवतियखहयर जाव गो० ! जह० अंतोमहत्तं उक्कोसेणं अंतोमहत्तं, पज्जत्तयगम्भवक्कंतियखयरपंचेंदियतिरिक्ख० जाव गोयमा! जहः अंतो० उक्कोसेणं पलिमोवमस्स असंखेज्जइभागं अंतोमुत्तूणं / [387-4 प्र.] भगवन् ! खेचरपंचेन्द्रियतियंचयोतिक जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? [387-4 उ.] गौतम ! सामान्य से खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तमहर्त की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है। समूच्छिम खेचरपंचेन्द्रियतियं चयोनिक जीवों की प्राधिक स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है। अपर्याप्तक समूच्छिम खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की स्थिति जघन्य से भी अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की है। पर्याप्तक संमूच्छिम खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून बहत्तर हजार वर्ष की जानना चाहिये / सामान्य रूप में गर्भव्युत्क्रान्तिकखेचरपंचेन्द्रियतियंचयोनिक जीवों को जघन्य स्थिति अन्तर्महूर्त की है और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अपर्याप्तक गर्भज खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है / तथा पर्याप्तक गर्भजखेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्महुर्त की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org