________________ [अनुयोगहारसूत्र पर्याप्तक द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्तन्यून बारह वर्ष की है। [2] तेइंदियाणं जाव गो० ! जहन्नेणं अंतो० उक्को० एकणपण्णासं राइंदियाई। अपज्जत्तय जाव गोतमा ! जह• अंतो० उक्कोसेणं अंतो० / पज्जत्तय जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं एकूणपण्णासं राइंदियाई अंतोमुत्तूणाई / [386-2 प्र.] भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीवों को स्थिति कितने काल को कही गई है ? [386-2 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूतं की और उत्कृष्ट उनपचास (49) दिन-रात्रि की होती है। अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्महुर्त की है। पर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त न्यून उनपचास दिन-रात्रि की होती है। [3] चरिदियाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्को. छम्मासा / अपज्जत्तय जाव गो० ! जह० अंतोमुहुत्तं उक्को० अंतो० / पज्जत्तयाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्कोसेणं छम्मासा अंतोमुहुत्तणा / [386-3 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [386-3 उ.] गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट छह मास की होती है। अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है। पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून छह मास की होती है। विवेचन-ऊपर औधिक रूप में विकलेन्द्रियत्रिक द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों की और उनके पर्याप्त, अपर्याप्त भेदों की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण बतलाया है। सामान्य से तथा अपर्याप्त जीवों की जघन्य स्थिति तो अन्तर्महर्त प्रमाण ही होती है किन्तु पर्याप्त जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट स्थिति अपर्याप्त अवस्थाभावी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति को कम करके शेष जानना चाहिये, जिसका दर्शक प्रारूप इस प्रकार हैनाम ज. स्थि . उ. स्थि. द्वीन्द्रिय अन्तर्मुहूर्त बारह वर्ष (अन्त. न्यून) . त्रीन्द्रिय उनपचास दिन ( , ) चतुरिन्द्रिय छह मास ( , ) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org