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________________ 104] [अनुयोगद्वारसूत्र [उ.] गौतम ! पर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून तीन रात्रि-दिन की होती है। [4] बाउकाइयाणं जाव गो० ! जह• अंतो० उक्को० तिणि वाससहस्साई। सुहमवाउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य तिण्ह वि जह अंतो० उपको० अंतोमुहत्तं / बादरवाउकाइयाणं जाव गो० ! जह० अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई / अपज्जत्तयबादरवाउकाइयाणं जाव गो० ! जह० अंतोमुहत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / पज्जत्तयबादरवाउकातियाणं जाव गो० ! जह० अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तिण्णि वाससहस्साई अंतोमुहत्तणाई। [385-4 प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की होती है ? [385-4 उ.] गौतम ! वायुकायिक जीवों को जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की होती है / किन्तु सामान्य रूप में सूक्ष्म वायुकायिक जीवों की तथा उसके अपर्याप्त और पर्याप्त भेदों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्महूर्त प्रमाण होती है। गौतम ! बादर वायुकायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्महूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति तीन हजार वर्ष की होती है। ___ अपर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है / और-- गौतम ! पर्याप्तक बादर वायुकायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून तीन हजार वर्ष की है। [5] वणस्सइकाइयाणं जाव गो ! जह० अंतो० उक्को० दसवाससहस्साई। सुहमाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण य तिहि वि जह० अंतो० उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं / बादरवणस्सइकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिती पन्नत्ता ? गो० ! जह० अंतो० उक्को० इस बाससहस्साइं, अपज्जत्तयाणं जाव गो० ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / पज्जत्तयबादरवणस्सइकाइयाणं जाव गो० ! जह० अंतो० उक्को० दसवाससहस्साई अंतोमुत्तूणाई। [385-5 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? [385-5 उ.] गौतम ! सामान्य रूप से वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की होती है / सामान्य सूक्ष्म वनस्पतिकायिक तथा उनके अपर्याप्तक और पर्याप्तक भेदों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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