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________________ 290] [अनुयोगद्वारसूत्र आदि का मान ज्ञात किया जाता है / अतएव अब चतुर्गति के जीवों की भपस्थिति--आयुष्य का प्रमाणनिरूपण करते हैं। नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चार गतियां हैं / अत: इसी क्रम से उनकी स्थिति का निर्देश करने के लिए जिज्ञासु प्रश्न करता है--- नारकों की स्थिति 383. [1] रइयाणं भंते ! के वत्तियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं / [383-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीवों की स्थिति (आयु) कितने काल की कही गई है ? [383-1 उ.] गौतम ! सामान्य रूप में (नारक जीवों की स्थिति) जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की कही है। विवेचन-सूत्र में सामान्य रूप में नैरयिक जीवों की स्थिति बताई है किन्तु रत्नप्रभा प्रादि नाम वाली नरकपृथ्वियां सात हैं ! अतः अब पृथक्-पृथक पृथ्वी के नारकों की स्थिति का निरूपण करते हैं। [2] रयणप्पभापुढविणेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पं० ? गो! जहन्नेणं वसवाससहस्साई उक्कोसेणं एक्कं सागरोवमं, अपज्जत्तगरयणप्पभापुढविणेरइयाणं भंते ! केवतिकालं ठिती पं०? गो० ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्को० अंतो०, पज्जत्तग जाव जह० दसवाससहस्साइं अंतोमुहुतूणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं अंतोमुहत्तूणं / [383-2 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? [383-2 उ.] गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की होती है / [प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति कितने काल की है ? [उ.] गौतम ! इनकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की होती है। [प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के पर्याप्तक नारकों की स्थिति कितने काल की कही है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त न्यून दस हजार वर्ष को और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून एक सागरोपम की होती है। [3] सक्करपभापुढविणेरइयाणं भंते ! केवतिकालं ठिती पं० ? गो० ! जहन्नेणं सागरोवमं उक्कोसेणं तिणि सागरोवमाई। [383-3 प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति कितनी है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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