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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [383-3 उ.] गौतम (सामान्य रूप में) शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की जघन्य स्थिति एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम प्रमाण कही गई है। [4] एवं सेसपहासु वि पुच्छा भाणियन्वा-वालयफ्भापुढविणेरइयाणं जह० तिणि सागरोवमाइं, उपकोसेणं सत सागरोवमाई। पंकपभापुढविनेरइयाणं जह० सत्त सागरोवमाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई। धूमप्पभापुढ विनेरइयाणं जह० बस सागरोवमाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाई। तमपुढविनेरइयाणं भंते ! केवतिकालं ठिती पन्नता ? गो० ! जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं बावीसं सागरोक्माई। तमतमापुढविनेरइयाणं भंते ! केवतिकालं ठिती पन्नत्ता? गो० ! जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। [383-4] इसी प्रकार के प्रश्न शेष पृथ्वियों के विषय में भी पूछना चाहिये / जिनके उत्तर क्रमश: इस प्रकार हैं---- बालुकाप्रभा नामक तीसरी पृथ्वी के नैरयिकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की है। (चतुर्थ) पंकप्रभा पृथ्वी के नारकों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की कही है। धूमप्रभा (नामक पंचम) पृथ्वी के नारकों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति सत्रह सागरोपम प्रमाण जानना चाहिये। {प्र.] भगवन ! तमःप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति कितने काल की है ? उ.] गौतम ! तमःप्रभा नामक षष्ठ पृथ्वी के नारकों की जघन्य स्थिति सत्रह सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम की होती है / [प्र.] भगवन् ! तमस्तम:प्रभा पृथ्वी के नारकों की प्रायु-स्थिति कितने काल की बताई है ? [उ.] आयुष्मन् ! तमस्तम :प्रभा (नामक सप्तम) पृथ्वी के नैरयिकों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है।' 1. सातों नरकवियों के नारकों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति दर्शक संग्रहणी गाथाएँ इस प्रकार हैं--- सागरमेयं तिय सत्त दस य सत्तरस तह य बावीसा / सेतीसं जाब ठिई सत्तसु वि कमेण पुढवीसु / / जा पढमाए जेट्रा सा बीयाए कणिट्रिया भणिया। प्रथम नरकपृथ्वी से लेकर मप्तम पृथ्बी तक अनुक्रम से एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस और तेतीस सागरोपम को उत्कृष्ट स्थिति है तथा जो पूर्व पृथ्वी की उत्कृष्ट स्थिति है, वह उसकी उत्तरवर्ती पृथ्वी की जघन्य स्थिति जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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