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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [297 भागमेता सुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा। ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेज्मा, नो वाऊ हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो पलिविद्धंसेज्जा, नो पूइत्ताए हव्वमागच्छेज्जा / ततो गं वातसते वाससते गते एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निटिए भवति, से तं सुहमे अद्धापलिओवमे। एएसि पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया। तं सुहमस्स प्रद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं / / 110 / / [381 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम का क्या स्वरूप है ? [381 उ.] आयुष्मन् ! सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है- एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक (कुछ न्यून षष्ठ भाग अधिक) तीन योजन की परिधि वाला एक पल्य हो / उस पल्य को एक-दो-तीन दिन के यावत् बालान कोटियों से पूरी तरह भर दिया जाए। फिर उनमें से एक-एक बालाग्र के ऐसे असंख्यात असंख्यात खण्ड किये जाएँ कि वे खण्ड दृष्टि के विषयभूत होने वाले पदार्थों की अपेक्षा असंख्यात भाग हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यात गणे अधिक हों / उन खण्डों में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक खण्ड को अपहृत करने–निकालने पर जितने समय में वह पल्य बालाग्रखण्डों से विहीन, नीरज, संश्लेषहित और संपूर्ण रूप से निष्ठित- खाली हो जाए, उतने काल को सूक्ष्म श्रद्धापल्योपम कहते हैं। इस अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटि से गुणा करने से अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपमों का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है / 110 382. एएहि सुमेहि अद्धापलिओवम-सागरोवमेहि किं पयोयणं ? एतेहिं सुहुमेहिं अद्धापलिओवम-सागरोवमेहि रतिय-तिरियजोणिय-मस-देवाणं आउयाई मविज्जति / [382 प्र.] भगवन् ! इस सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम और सूक्ष्म प्रद्धासागरोपम से किस प्रयोजन को सिद्धि होती है ? [382 उ.] अायुष्मन् ! इस सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से नारक, तियंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य का प्रमाण जाना जाता है / विवेचन--यहाँ सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म श्रद्धासागरोपम का स्वरूप बताया है। व्यावहारिक अद्धापल्योपम से इस सूक्ष्म अद्धापल्योपम के वर्णन में यह अन्तर है कि पल्य में भरे बालागों के असंख्यात-असंख्यात खण्ड बुद्धि से कल्पित करके उन खण्डों को सौ-सौ वर्ष बाद पत्य में से निकाला जाता है / जितने काल में वे बालाग्रखण्ड निकल जाते हैं उतने काल को एक सूक्ष्म प्रद्धापल्योपम कहते हैं / व्यावहारिक अद्धापल्योपम में संख्यात करोड़ वर्ष और सूक्ष्म अद्धापल्योपम में असंख्यात करोड़ वर्ष होते हैं। इसके द्वारा नारक आदि चातुर्गतिक जीवों की भवस्थिति और साथ में कायस्थिति, कर्मस्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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