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________________ 296] [अमुयोगबारसूत्र एएसि पल्लाणं कोडाकोडी हविज्ज दसगुणिया। तं वावहारियस्स अद्धासागरोषमस्स एगस्स भवे परीमाणं // 109 // [378, 379.] उनमें से सूक्ष्म अद्धापल्योपम अभी स्थापनीय है (अर्थात् वह बाद में प्ररूपित किया जायेगा) 1 व्यावहारिक का वर्णन निम्न प्रकार है धान्य के पल्य के समान एक योजन प्रमाण दोर्घ, एक योजन प्रमाण विस्तार और एक योजन प्रमाण ऊर्वता से युक्त तथा साधिक तीन योजन की परिधि वाला कोई पत्य हो / उस पल्य को एक, यावत सात दिवस के उगे हए बालानों से इस प्रकार से पारित कर दिया जाए कि वे बालाग्र अग्नि से जल न सके, वायु उन्हें उड़ा न सके, वे सड़-गल न सकें, उनका विध्वंस भी न हो सके और उनमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न न हो सके / तदनन्तर उस पल्य में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक बालान निकालने पर जितने काल में वह पत्य उन बालाग्नों से रहित, रजरहित और निर्लेप एवं निष्ठित—पूर्ण रूप से खाली हो जाए, उतने काल को व्यावहारिक अद्धापल्योपम कहते हैं। दस कोटाकोटि व्यावहारिक अद्धापल्योपमों का एक व्यावहारिक सागरोपम होता है / 105 380. एएहिं वावहारिएहि अद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं कि पओयणं? एएहिं जाव नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं तु पण्णवणा पण्णविज्जति / से तं वावहारिए अद्धापलिओवमे / [380 प्र.] भगवन् ! व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? 380 उ.आयुष्मन् ! व्यावहारिक श्रद्धा पल्योपम एवं सागरोपम से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है / ये केवल प्ररूपणा के लिये हैं। इस प्रकार से व्यावहारिक अद्धापल्योपम का स्वरूप जानना चाहिये। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम के स्वरूप का निरूपण करते हुए इन दोनों के प्रयोजन का कथन किया है। इन दोनों के स्वरूप का निरूपण पूर्वोक्त व्यावहारिक उद्धार पल्यापम एवं सागरोपम के तुल्य हो है, किन्तु इतना अन्तर है कि व्याव प्रद्धा पल्योपम और सागरोपम में एक-एक बालान को प्रत्येक समय न निकाल कर सौ-सौ वर्ष के बाद निकालने पर जितना समय लगता है उतना काल व्यावहारिक अद्धापल्योपम का है और दस कोटाकोटि व्यावहारिक अद्धापल्योपमों का एक व्यावहारिक प्रद्धासागरोपम होता है। __इस व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम का साक्षात् प्रयोजन तो कुछ नहीं है, लेकिन परम्परा रूप में सूक्ष्म प्रद्धा पल्योपम और सागरोपम का ज्ञान कराने में सहायक हैं। इसलिये इनकी प्ररूपणा की गई है। 381. से कि तं सुहुमे अद्धापलिओवमे ? सुहमे अद्धापलिओवमे से जहानामते पल्ले सिया---जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं, तंतिगुणं सविसेसं परिक्खेवणं; से गं पल्ले एगाहिय-बेहिय-तेहिय जाव भरिए वालगकोडीणं / तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेन्जाइं खंडाई कज्जति। ते णं वालगा दिट्ठोओगाहणाओ असंखेज्जति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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