________________ 282] [अनुयोगद्वारसूत्र होने से विशेष स्पष्टीकरण नहीं किया जा सकता परन्तु प्रत्येक उत्सेधांगुल भगवान् महावीर के अर्धांगुल के बराबर होता है, यह निश्चित है और उससे हजार गुणा एक प्रमाणांगुल होता है / प्रमारणांगुल का प्रयोजन 360. एतेणं पमाणंगुलेणं कि पओयणं ? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पायालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कडाणं सेलाणं सिहरीणं पन्भाराणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं वासहरपन्क्याणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणागं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्संभ-उच्चत्तोबेह-परिक्खेवा मविन्जति / [360 प्र.] भगवन् ! इस प्रमाणांगुल से कौनसा प्रयोजन सिद्ध होता है ? [360 उ.] अायुष्मन् ! इस प्रमाणांगुल से (रत्नप्रभा आदि नरक) पृथ्वियों की, (रत्नकांड आदि) कांडों की, पातालकलशों की, (भवनवासियों के) भवनों की, भवनों के प्रस्तरों की, नरकावासों की, नरकपंक्तियों की, नरक के प्रस्तरों की, कल्पों की, विमानों की, विमानपंक्तियों की, विमानप्रस्तरों की, टंकों की, कूटों की, पर्वतों की, शिखर वाले पर्वतों की, प्राग्भारों (नमित पर्वतों) की, बिजयों की, वक्षारों की, (भरत आदि) क्षेत्रों को, (हिमवन आदि) वर्षधर पर्वतों की, समुद्रों की, वेलाओं की, वेदिकाओं की, द्वारों की, तोरणों की, द्वीपों को तथा समुद्रों को लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई और परिधि नापी जाती है। विवेचन-लोक में तीन प्रकार के रूपी पदार्थ हैं-१. मनुष्यकृत, 2. उपाधिजन्य और 3. शाश्वत / मनुष्यकृत पदार्थों की लंबाई, चौड़ाई आदि का माप आत्मागुल के द्वारा जाना जाता है / उपाधिजन्य पदार्थ से यहाँ शरीर अभिप्रेत है / इसका माप उत्सेधांगुल द्वारा किया जाता है। शाश्वत पदार्थों की लम्बाई-चौड़ाई आदि प्रमाणांगुल के द्वारा मापी जाती है। जैसे नरकभूमियां शाश्वत हैं, उनकी लम्बाई-चौड़ाई में किंचिन्मात्र भो अन्तर नहीं पाता, अत: प्रमाणांगुल का परिमाण भी सदैव एक जैसा रहता है। प्रमारणांगुल के भेद, अल्पबहुत्व ___ 361. से समासओ तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंलेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढोए गुणिया पतरं, पतरं सेढीए गणितं लोगो, संखेज्जएणं लोगो गुणितो संखेज्जा लोगा, असंखेज्जएणं लोगो गुणिओ असंखेज्जा लोगा। 6361] वह (प्रमाणांगुल) संक्षेप में तीन प्रकार का कहा गया है—१. श्रेण्यंगुल, 2. प्रतरांगुल, 3. घनांगुल। (प्रमाणांगुल से निष्पन्न) असंख्यात कोडाकोडी योजनों की एक श्रेणी होती है। श्रेणी को श्रेणी से गणित करने पर प्रतरांगुल और प्रतरांगुल को श्रेणी के साथ गुणा करने से (एक) लोक होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org