________________ hos: प्रमाणाधिकार निरूपण] [279 [355-5 प्र.] भगवन् ! अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर की कितनी अवगाहना होती है ? [355-5 उ.] गौतम ! अनुत्तरविमानवासी देवों के एकमात्र भवधारणीय शरीर ही कहा गया है / उसकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हाथ की होती है। विवेचन--यहाँ ग्रेवेयक और अनुत्तर विमानवासी देवों की अवगाहना का प्रमाण बतलाया है / ये देव उत्तरविक्रिया नहीं करते हैं, अतएव इनकी भवधारणीय शरीर की अवगाहना का ही प्रमाण बतलाया है। ___चतुर्विध देवनिकायों की शरीरावगाहना के प्रमाण का सुगमता से बोध कराने वाला प्रारूप इस प्रकार है-- क्रम देवनाम भवधारणीय उत्तरवैक्रिय जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट 1. भवनपति अंग.असं.भाग सात हाथ अंगु.सं. भाग एक लाख यो. 2. वाण-व्यंतर 3. ज्योतिष्क 4. सौधर्म-ईशान 5. सनत्कुमार-माहेन्द्र छह हाथ 6. ब्रह्मलोक-लान्तक पांच हाथ 7. महाशुक्र-सहस्रार चार हाथ 8. पानत-प्राणत तीन हाथ 9. पारण-अच्युत तीन हाथ 10. वे क दो हाथ 11. अनुत्तर एक हाथ यह सर्व अवगाहना उत्सेधांगुल से मापी जाती है। उत्सेधांगुल के भेद और भेदों का अल्पबहुत्व 356. से समासओ तिविहे पण्णत्ते / तं जहा---सूईअंगुले पयरंगुले घणंगुले / अंगुलायता एगपदेसिया सेढी सूईअंगुले, सूई सूईए गणिया पयरंगुले, पयरं सूईए गुणियं धणंगुले। [356] वह उत्सेधांगुल संक्षेप से तीन प्रकार का कहा गया है / यथा-सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और धनांगुल। एक अंगुल लम्बी तथा एक प्रदेश चौड़ी प्राकाशप्रदेशों की श्रेणी (पंक्ति --रेखा) को सूच्यंगुल कहते हैं / सूची से सूची को गुणित करने पर प्रतरांमुल निष्पन्न होता है, सूच्युंगल से गुणित प्रतरांगुल धनांगुल कहलाता है।' 1. सूच्यंगुल में केवल लम्बाई का, प्रतरांगुल में लम्बाई और चौड़ाई का तथा धनांगुल में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई --तीनों का ग्रहण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org