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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [3] जहा सोहम्मयदेवाणं पुच्छा तहा सेसकप्पाणं देवाणं पुच्छा भाणियवा जाव अच्चुयकप्पो सणकुमारे भवधारणिज्जा जह० अंगु० असं० उषकोसेणं छ रयणीओ; उत्तरवेउब्धिया जहा सोहम्मे। जहा सणंकुमारे तहा माहिदे / बंभलोग-लंतएसु भवधारणिज्जा जह० अंगुल० असं०, उक्को० पंच रयणीओ; उत्तरवेउव्विया जहा सोहम्मे। महासुक्क-सहस्सारेसु भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगु० असं०, उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ; उत्तरवेउन्विया जहा सोहम्मे / आणत-पाणत-आरण-अच्चुतेसु चउसु वि भवधारणिज्जा जह• अंगु० असं०, उक्कोसेणं तिण्णि रयणीओ; उत्तरवेउन्धिया जहा सोहम्मे / [355-3] सौधर्मकल्प के देवों की शरीरावगाहना विषयक प्रश्न की तरह ईशानकल्प को छोड़कर शेष अच्युतकल्प तक के देवों को अवगाहना संबन्धी प्रश्न पूर्ववत् जानना चाहिये। उत्तर इस प्रकार हैं सनत्कुमारकल्प में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह रत्नि प्रमाण है, उत्तरवैक्रिय अवगाहना सौधर्मकल्प के बराबर है। सनत्कुमारकल्प जितनी अवगाहना माहेन्द्रकल्प में जानना। ब्रह्मलोक और लांतक-इन दो कल्पों में भवधारणीय शरीर की अधन्य अवगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना पांच रत्ति प्रमाण है तथा उत्तरवैक्रिय अवगाहना का प्रमाण सौधर्मकल्पवत् है। महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार रत्ति प्रमाण है तथा उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना सौधर्मकल्प के समान है। अानत, प्राणत, प्रारण और अच्युत-इन चार कल्पों में भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट तीन रत्नि की है। इनकी उत्तरक्रिय अवगाहना सौधर्मकल्प के ही समान है। विवेचन-देवों के चार निकाय हैं-भवनपति, वाण-व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक / इनमें से आदि के तीन निकाय इन्द्र प्रादि कृत भेदकल्पना पाये जाने से निश्चितरूपेण कल्पोपपन्न ही हैं। फिर भी रूढि से 'कल्प' शब्द का व्यवहार वैमानिकों के लिये ही किया जाता है। सौधर्म आदि अच्युत पर्यन्त के देव इन्द्रादि भेद वाले होने से कल्पोपपन्न हैं और इनसे ऊपर ग्रैवेयक आदि सर्वार्थसिद्ध तक के विमानों में इन्द्रादि की कल्पना नहीं होने से वहाँ के देव कल्पातीत कहलाते हैं। उपर्युक्त सूत्र में कल्पोपपन्न वैमानिक देवों के सौधर्म से लेकर अच्युत पर्यन्त के देवों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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