________________ 276] [अनुयोगद्वारसूत्र वाण-व्यंतर और ज्योतिष्क देवों को अवगाहना 353. वाणमंतराणं भवधारणिज्जा उत्तरवेउन्विया य जहा असुरकुमाराणं तहा भाणियव्यं / [353 / वाणव्यंतरों की भवधारणीय एवं उत्तर वैक्रियशरीर की अवगाहना असुरकुमारों जितनी जानना चाहिये। 354. जहा वाणमंतराणं तहा जोतिसियाणं / [354 | जितनी (भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय रूप) अवगाहना वाणव्यतरों की है, उतनी ही ज्योतिष्क देवों की भी है। विवेचन-इन दो सूत्रों में वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देवनिकायों की शरीरावगाहना का प्रमाण पूर्व में कथित असुरकुमारों की अवगाहना के अतिदेश द्वारा बतलाया है। जिसका तात्पर्य यह हुआ कि असुरकुमारों की जो भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट सात रत्नि और उत्तरवैक्रिय की जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन की कही है, इतनी ही अवगाहना इन व्यंतरों एवं ज्योतिष्क देवों की भी है। लब्धि की अपेक्षा देव पर्याप्तक ही होते हैं। अतएव पर्याप्त, अपर्याप्त विकल्प संभव नहीं होने से इनकी पृथक्-पृथक् अवगाहना का प्रमाण नहीं बताया है, किन्तु वैक्रियशरीरी होने से विविध प्रकार के उत्तरवैक्रिय रूप निष्पन्न करने की क्षमता वाले होने से तत्संबन्धी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है / वैमानिक देवों को अवगाहना 355. [1] सोहम्मयदेवाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा प० / तं०-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउम्विया य। तत्थ गंजा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेजहभाग, उक्कोसेणं मोयणसत सहस्सं। [355-1 प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प के देवों की शरीरावगाहना कितनी है ? [355-1 उ.] गौतम ! (सौधर्मकल्प के देवों की अवगाहना) दो प्रकार की कही गई हैभवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। इनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात रत्नि है। उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है। [2] जहा सोहम्मे तहा ईसाणे कप्पे वि भाणियन्वं / [355-2] ईशानकल्प में भी देवों की अवगाहना का प्रमाण सौधर्मकल्प जितना ही जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org