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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [271 [उ.] गौतम ! उनकी शरीरावगाहना का प्रमाण जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व है। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त अपर्याप्त भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवें भाग है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व प्रमाण है। विवेचन--प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्य चयोनिकों की शरीरावगाहना का जघन्य और उत्कृष्ट दोनों अपेक्षायों से सात अवगाहनास्थानों में प्रमाण बतलाया है। प्रागे खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाते हैं / [4] खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं०, गो० ! जह० अंगु० असं० उक्को० धणुपुहत्तं / सम्मुच्छिमखयराणं जहा भुयपरिसप्पसम्मुच्छिमाणं तिसु वि गमेसु तहा भाणियस्वं / गम्भवक्कंतियाणं जह• अंगु० असं०, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं / अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगु० असं०, उक्को अंग० असं० / पज्जत्तयाणं जह० अंगु० असंखे०, उक्को० घणुपुहत्तं / [351-4 प्र.] भगवन् ! खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [351-4 उ. गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है तथा सामान्य संमूच्छिम खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना संमूर्छिम जन्म वाले भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय तिर्यचों के तीन अवगाहनास्थानों के बराबर समझ लेना चाहिये। [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। ___ [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतियंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है / [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त गर्भज खेचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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