________________ 270) [अनुयोगद्वारसूत्र [उ.] गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग है और उत्कृष्ट अवगाहना एक सहस्र योजन की है। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त गर्भजउरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक उरपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है। विवेचन-प्रस्तुत प्रश्नोत्तरों में स्थलचर के दूसरे भेद उरपरिसर्पपंचेन्द्रिय तिर्यंचों के सात अवगाहनास्थानों में जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है। इनमें गर्भज पर्याप्त उरपरिसों की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन मनुष्यक्षेत्रबहिर्वीपवर्ती गर्भज सों की अपेक्षा जानना चाहिए। [प्र.] भगवन् ! अब भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जानने की जिज्ञासा है ? _ [उ.] गौतम ! सामान्य से भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व की है। [प्र.] भगवन् ! संमूच्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों को अवगाहना का प्रमाण क्या है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व को अवगाहना है। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त समूच्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतियंचयोनिकों की अवगाहना का प्रमाण क्या है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना का प्रमाण अंगुल का असंख्यातवां भाग है। [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त समूच्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना का प्रमाण कितना है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की [प्र.] भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्त भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना का प्रमाण क्या है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org