________________ 272] [अनुयोगवारसूत्र [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य शरीरावगाहना का प्रमाण अंगुल का असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है। [5] एत्थ संगहणिगाहाओ भवंति / तं जहा जोयणसहस्स गाउयपुहत्त तत्तोय ओयणपुहत्तं / दोण्हं तु धणुपुहत्तं सम्मुच्छिम होइ उच्चत्तं // 101 / / जोयणसहस्स छग्गाउयाई तत्तो य जोयणसहस्सं / गाउयपुहत्त भुयगे पक्खोसु भवे धणुपुहत्तं // 102 // [351-5] उक्त समग्र कथन की संग्राहक गाथाएं इस प्रकार हैं संमूच्छिम जलचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन, चतुष्पदस्थलचर की गव्यूतिपथक्त्व, उरपरिसर्पस्थलचर की योजनपथक्त्व, भुजपरिसर्पस्थलचर की एवं खेचरतियंचपंचेन्द्रिय की धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। 101 गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में से जलचरों की एक हजार योजन, चतुष्पदस्थलचरों की छह गव्यूति उरपरिसर्पस्थलचरों को एक हजार योजन, भुजपरिसर्पस्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व और पक्षियों (खेचरों) की धनुषपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट शरीरावगाहना जानना चाहिये / 102 विवेचन-उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यचों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है। इसके साथ ही एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्यन्त के समस्त तिर्यंचगति के जीवों की अवगाहना का वर्णन समाप्त हुआ। उपर्युक्त कथन को निम्नलिखित प्रारूप द्वारा सुगमता से समझा जा सकता हैअवगा- नाम जघन्य अवगाहना उत्कृष्ट अवगाहना हना क्रम 1. सामान्य पंचेन्द्रिय अंगु. के असंख्यातवें भाग एक हजार योजन प्रमाण जलचर 1. सामान्य जलचर अंगु. के असं. भाग एक हजार योजन 2. समूच्छिम जलचर अंगु के असंख्या. भाग एक हजार योजन 3. अपर्या , अंगुल के असंख्यातवें भाग 4. पर्याप्त एक हजार योजन 5. सामान्य गर्भज 6. अपर्याप्त , अंगुल के असंख्यातवें भाम 7. पर्याप्त , एक हजार योजन प्रमाण स्थलचर (क) चतुष्पद 1. सामान्य चतुष्पद अंगुल के असंख्या. भाग छह गव्यूति प्रमाण 2. संमू. , गव्यूतिपृथक्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org