________________ 266] [अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन-चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना का चार गव्यूत प्रमाण अढाई द्वीप से बाहर के भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय जीवों की अपेक्षा से बताया गया है / पंचेन्द्रिय तियंच जीवों को शरीरावगाहना 351. [1] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं / [351-1 प्र.] भगवन् ! तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी है ? [351-1 उ.] गौतम ! (सामान्य रूप में तिथंच पंचेन्द्रिय जीवों की) जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है। [2] जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा, गोयमा! एवं चेव / सम्मुच्छिमजलयरपंचेंबियाणं एवं चेव / अपज्जत्तगसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग, उक्कोसेण वि अंगलस्स असं० / पज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगु० असंले० उक्कोसेणं जोयणसहस्सं / गम्भवक्कंतियजलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। अपज्जत्तयाणं पुच्छा, गो० ! जह० अंगु० असं० उक्कोसेणं अंगु० असं० / पज्जत्तयाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगु० असंख०, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं / [351-2 प्र.] भगवन् ! जलचरपंचेन्द्रियतियंचयोनिकों की अवगाहना के विषय में पृच्छा है ? [351-2 उ.] गौतम ! इसी प्रकार है। अर्थात् जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है / [प्र.] संमूच्छिम जलचरतियंचयोनिकों की अवगाहना के लिये जिज्ञासा है ? [उ.] गौतम ! संमूच्छिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की जानना चाहिये। [प्र.] अपर्याप्त समूच्छिम जलचरतियंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! उनकी (अपर्याप्त समूच्छिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की) जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है / [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त समूच्छिम जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org