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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [265 अपर्याप्त (द्वीन्द्रिय जीवों) को जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के प्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त (द्वीन्द्रिय जीवों) की जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है। विवेचन द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहनावर्णन के प्रसंग में पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीव की उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन प्रमाण बतलाई है, वह स्वयंभूरमणसमुद्र में उत्पन्न शंखों आदि की अपेक्षा से जानना चाहिये। किसी-किसी प्रति में द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग की लिखी है, यह चिन्तनीय है / त्रीन्द्रिय जीवों की शरीरावगाहना [2] तेइंदियाणं पुच्छा गो० ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग, उक्कोसेणं तिष्णि गाउयाई; अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जहभाग; पज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं तिग्णि गाउयाई। [350-2 प्र.] भगवन् ! श्रीन्द्रिय जीवों की अवगाहना का मान कितना है ? [350-2 उ. गौतम ! सामान्यतः त्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोस की है। अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों को जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट अवगाहना तीन गव्यूत प्रमाण है। विवेचन–पर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की बताई गई तीन गव्यूत प्रमाण उत्कृष्ट अवगाहना अढ़ाई द्वीप (जम्बूद्वीप, धातकीखंड और अधंपुष्कर द्वीप) के बाहर के द्वीपों में रहने वाले कर्णशृगाली आदि त्रीन्द्रिय जीवों की अपेक्षा जानना चाहिये / चतुरिन्द्रिय जीवों को शरीरावगाहना [3] चारदियाण पुच्छा, गो० ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं; अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेन्जइभागं; पज्जत्तयाणं पुच्छा, जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई / [350-3 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों को अवगाहना कितनी है ? [350-3 उ.] गौतम ! औधिक रूप से चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गव्युत प्रमाण है। अपर्याप्त (चतुरिन्द्रिय जीवों) की जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र है / पर्याप्तकों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्टतः चार गव्यूत प्रमाण है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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