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________________ 264) [अनुयोगद्वारसूत्र रूप से सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की और (विशेष रूप से) सूक्ष्म अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीवों की तथा सामान्यतः बादर पृथ्वीकायिकों एवं विशेषतः अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिकों की यावत् पर्याप्त बादर वायुकायिक जीवों की शरीरावगाहना जानना चाहिये। [2] वणस्सइकाइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। सुहुमवणस्सइकाइयाणं ओहियाणं 1 अपज्जत्तयाणं 2 पज्जत्तगाणं 3 तिण्ह वि जहन्ने] अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं। बादरवणस्ततिकाइयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं सातिरेग नोयणसहस्स; अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंलेज्जइभाग, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग; पज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उनकोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं / [349-2 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी है ? [349-2 उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन की है। सामान्य रूप में सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और (विशेष रूप में) अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है / प्रौधिक रूप से बादर वनस्पतिकायिक जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक एक हजार योजन प्रमाण है। विशेष-अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त (बादर वनस्पतिकायिक जीवों) की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक एक हजार योजन प्रमाण होती है। विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में तिर्यंचगति के उस और स्थावर रूप दो भेदों में से पृथ्वीकायिक आदि पांच स्थावर जीवों की शरीरावगाहना का प्रमाण बतलाया है / द्वीन्द्रिय जीवों को अवगाहना ___ 350. [1] एवं बेइंदियाणं पुच्छा भाणियव्वा-बेइंदियाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई; अपज्जत्तयाणंजहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग; पज्जत्तयाणं ज० अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई। [350-1 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी है ? [350-1 उ.] गौतम ! (सामान्य रूप से) द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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