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________________ प्रमाणाधिकार निरूपण [263 6. 3,2,183 12,0,716 26,0,4 58,0,30 7. 4,1,3 12,3,3 27,3,246 2,2,0 8. 4,3,113 13,1,231 29,2,13 9. 5,1,20 14,7,1915 31,1,0 10, 6,0,43 14,3,151 11. 6,2,13 15,2,12 12. 7,0,213 भवनपति देवों की शरीरावगाहना 348. [1] असुरकुमाराणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता? गोतमा ! दुविहा पण्णत्ता ! तं०-भवधारणिज्जा य 1 उत्तरवेउब्धिया य 2 / तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्त असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं सत्त रयणोओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउल्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग उक्कोसेणं जोयणसत्तसहस्सं. [348-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों की कितनी शरीरावगाहना है ? [348-1 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार की है, यथा-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय अवगाहना / उनमें से भवधारणीय शरीरावगाहना तो जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात रत्ति प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है। [2] एवं असुरकुमारगमेणं जाव थणितकुमाराणं ताव भाणियन्वं / [348-2] असुरकुमारों की अवगाहना के अनुरूप ही नागकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों पर्यन्त समस्त भवनवासी देवों की दोनों प्रकार की अवगाहना का प्रमाण जानना चाहिये। पंच स्थावरों की शरीरावगाहना 349. [1] पुढ विकाइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं वि अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं / एवं सुहमाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाणं बादराणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाणं च भाणियब्वं / एवं जाव बावरचाउक्काइयाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाण भाणियव्वं / [349-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही है ? [349-1 उ.] गौतम ! (पृथ्वीकायिक जीवों की शरीरावगाहना) जघन्य भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार सामान्य 1. असंख्यात के असंख्यात भेद होने से जघन्य की अपेक्षा उत्कृष्ट प्रवगाहना अधिक है। यही अपेक्षा सर्वत्र जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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