________________ 252] [अतुयोनद्वारसूत्र रूप में परिणत होने की शक्ति है, अतएव परमाणु या परमाणुनों का पिंड-स्कन्ध जिस स्थान में अवस्थित होता है, उसी स्थान में अन्य परमाणु और स्कन्ध भी रह सकते हैं / आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से भी परमाणु की सूक्ष्मता का कुछ अनुमान लग सकता है / पचास शंख परमाणुओं का भार ढाई तोले के लगभग और व्यास एक इंच का दस करोड़वां भाग होता है। धूल के एक लघुतम कण में दस पद्म से भी अधिक परमाणु होते हैं / सिगरेट को लपेटने के पतले कागज की मोटाई में एक से एक को सटाकर रखने पर एक लाख परमाणु आ जायेंगे। सोड़ावाटर को गिलास में डालने पर उसमें जो नन्हीं-नन्हीं बंद उत्पन्न होती हैं, उनमें से एक बूंद के परमाणुओं की गणना करने के लिये तीन अरब व्यक्तियों को बैठा दें और वे निरन्तर विना खाये, पीये और सोये प्रतिमिनट यदि तीन सौ की गति से परिगणना करें तो उस बूद के परमाणुओं की समस्त संख्या को गिनने में चार माह का समय लग जायेगा। बारीक केश को उखाड़ते समय उसकी जड़ पर जो रक्त की सूक्ष्म वृंद लगी रहेगी, उसे अणुवीक्षण यंत्र के माध्यम से इतना बड़ा रूप दिया जा सकता है कि वह बूंद छह या सात फीट के व्यास वृत्त में दिखलाई दे तो भी उसके भीतर के परमाणु का व्यास 9 इंच ही होगा।' उपर्युक्त कथन का यह प्राशय हया कि जो परम अण रूप है, उसी को परमाणु कहते हैं / जैनदर्शन में इस परमाणु की विभिन्न अपेक्षाओं से व्याख्या इस प्रकार की गई है--- कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः / एकरसगंधवर्णो द्विस्पर्शः कालिंगश्च // अर्थात् परमाणु किसी से उत्पन्न नहीं होता अत: वह कारण ही है / उससे छोटी दूसरी कोई वस्तु नहीं है अतः वह अन्त्य है, सूक्ष्म है और नित्य है / एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला है तथा कार्य देखकर ही उसका अनुमान किया जा सकता है-प्रत्यक्ष नहीं होता है। __ अत्तादि अत्तमज्झं अत्तंतं व इंदियगेज्झं / जं दवं अविभागो तं परमाणु विप्राणाहि / / अर्थात् जिसका आदि, मध्य और अन्त स्वयं वही है और जिसे इन्द्रियां ग्रहण नहीं कर सकतीं, ऐसे विभागरहित द्रव्य को परमाणु समझना चाहिये। परमाणु के उपर्युक्त स्वरूप-निर्देश से यह स्पष्ट है कि परमाणु परम-अणु रूप है। उसके भेद नहीं हैं, लेकिन सामान्य जनों को समझाने के लिये वीतराग विज्ञानियों ने परमाणु के उपाधिकृत भेदों की कल्पना इस प्रकार की है-१. सूक्ष्म-व्यावहारिक, 2. कारणरूप-कार्यरूप / 1. जैनदर्शन और आधुनिक विज्ञान पृ. 47 2. तत्वार्थभाष्य, तत्वार्थराजवार्तिक, अनुयोगद्वारसूत्र टीका पत्र 161 3. सर्वार्थ सिद्धि पृ. 221 में उद्धत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org