________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] [253 सूक्ष्म और व्यावहारिक परमाण के विषय में विस्तार से आगे विचार किया जा रहा है / अतः यहाँ शेष भेदों के लक्षणों का ही निर्देश करते हैं कारणरूप-कार्यरूप परमाण-जो पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चार धातुओं का हेतु है, वह कारणपरमाणु और स्कन्ध से पृथक् हुए अविभागी अन्तिम अंश को कार्यपरमाणु कहते हैं / अथवा स्कन्ध के विघटन से उत्पन्न होने वाला कार्यपरमाणु है और जिन परमाणुओं के मिलने से कोई स्कन्ध बने वह कारणपरमाणु है।' परमाणु के उपर्यत औपाधिक भेदों में से अब सूक्ष्म और व्यावहारिक परमाणु के विषय में विचार करते हैं कारण के बिना कार्य नहीं होता और परमाणुजन्य कार्य--स्कन्ध प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होने से सूक्ष्म परमाणु है तो अवश्य किन्तु वह प्रकृत में अनुपयोगी है। अतएव उसके अस्तित्व को स्वीकार करके भी उसे स्थापनीय मानकर अनन्तानन्त सूक्ष्म पुद्गल-परमाणुनों के एकीभाव रूप संयोग से उत्पन्न होने वाले व्यावहारिक परमाणु का विवेचन करते हैं। व्यावहारिक परमाणु 343. [1] से णं भते ! असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा / हंता ओगाहेज्जा। से णं तस्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? नो इणठे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमति / [343-1 प्र.] भगवन् ! ध्यावहारिक परमाणु तलवार की धार या छुरे की धार को अवगाहित कर सकता है ? [343-1 उ.] हाँ, कर सकता है। [प्रश्न तो क्या वह उस (तलवार या छुरे से) छिन्न-भिन्न हो सकता है ? [उत्तर] यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् ऐसा नहीं होता। शस्त्र इसका छेदन-भेदन नहीं कर सकता। विवेचन--पुद्गल द्रव्य के परमाणु और स्कन्ध ये दो मुख्य भेद हैं / प्रकारान्तर से छह भेद भी होते हैं 1. स्थूल-स्थूल-मिट्टी, पत्थर, काष्ठ आदि ठोस पदार्थ / 2. स्थूल-दूध-दही, पानी, तेल आदि तरल पदार्थ / 3. स्थूल-सूक्ष्म-प्रकाश, उष्णता आदि / 1. नियमसार तात्पर्यवृत्ति 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org