________________ 250] [अनुयोगद्वारसूत्र इस प्रकार आत्मांगुल का स्वरूप जानना चाहिए। विवेचन—सूच्यंगुल आदि अंगुलत्रिक का अल्पवहत्त्व उनके स्वरूप से स्पष्ट है। क्योंकि सूच्यंगुल में केवल दीर्घता ही होती है, अतएव वह अपने उत्तरवर्ती दो अंगुलों की अपेक्षा अल्प परिमाण वाला है। प्रतरांगुल में दीर्घता के साथ विष्कंभ भी होने से सूच्यंगुल की अपेक्षा उसका असंख्यात गुणाधिक प्रदेशपरिमाण होना स्वाभाविक है / घनांगुल में लम्बाई और चौड़ाई के साथ मोटाई का भी समावेश होने से उसमें प्रतरांगुल से असंख्यातगुणाधिकता स्पष्ट है / इसी कारण सूच्यंगूल आदि अंगूलनिक में पूर्व की अपेक्षा उत्तर अंगूल को असंख्यात-असंख्यात गुणा अधिक कहा है / ‘से तं प्रायंगले' पद पात्मांगुल के वर्णन की समाप्ति का सूचक है / उत्सेधांगुल 339. से कि तं उस्सेहंगुले ? उस्सेहंगुले अणेगविहे पण्णत्ते / तं जहा परमाणू तसरेण रहरेणू अग्गयं च वालस्स / लिक्खा जूया य जवो अट्टगुणविवड्डिया कमसो // 99 // [339 प्र.] भगवन् ! उत्सेधांगुल का क्या स्वरूप है ? [339 उ.] आयुष्मन् ! उत्सेधांगुल अनेक प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार परमाणु, सरेणु, रथरेणु, बालाग्र (बाल का अग्र भाग), लिक्षा (लीख), यूका (जं) और यव (जौ) ये सभी क्रमश: उत्तरोत्तर पाठ गुणे जानना चाहिए / 59 विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में उत्सेधांमुल का स्वरूप बताया है। उत्सेध कहते हैं बढ़ने को। अतएव जो अनन्त सूक्ष्म परमाणु, सरेणु........इत्यादि के क्रम से बढ़ता है, वह उत्सेधांगुल कहलाता है / अथवा नारकादि चतुर्गति के जीवों के शरीर की उच्चता-ऊंचाई का निर्धारण करने के लिये जिस अंगुल का उपयोग किया जाता है, उसे उत्सेधांगुल कहते हैं। उत्सेघांगुल तो एक है किन्तु उसकी अनेक प्रकारता परमाणु, बसरेणु आदि की विविधता की अपेक्षा से जानना चाहिए। किन्तु परमाण, सरेणु यादि स्वयं उत्सेधांगुल नहीं हैं। उनसे निष्पन्न होने वाला अंगुल उत्सेघांगुल कहलाता है / उत्सेधांगुल की निष्पत्ति की प्राद्य इकाई परमाणु है, अत: अब परमाणु आदि के क्रम से उत्सेधांगुल का सविस्तार वर्णन करते हैं। परमाणुनिरूपण 340. से कि तं परमाणू ? परमाणू दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-सुहुमे य 1 वावहारिए य 2 / [340 प्र.] भगवन् ! परमाणु क्या है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org