________________ 236] [अनुयोगद्वारसूत्र 1. अर्धकर्ष, 2. कर्ष, 3. अर्धपल, 4. पल, 5. अर्धतुला, 6. तुला, 7. अर्धभार और 8, भार / इन प्रमाणों की निष्पत्ति इस प्रकार होती है--दो अर्धकर्षों का एक कर्ष, दो कर्षों का एक अर्धपल, दो अर्धपलों का एक पल, एक सौ पांच अथवा पांच सौ पलों की एक तुला, दस तुला का एक अर्धभार और बीस तुला दो अर्धभारों का एक भार होता है। 323. एएणं उम्माणपमाणेणं किं पयोयणं ? एतेणं उम्लाणपमाणेणं पत्त-अगलु-तगर-चोयय-कुकुम-खंड-गुल-मच्छंडियादीणं दवाणं उम्माणपमाणणिन्वत्तिलक्खणं भवति / से तं उम्माणपमाणे / [323 प्र.] भगवन् ! इस उन्मानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? [323 उ.] आयुष्मन् ! इस उन्मानप्रमाण से पत्र, अगर, तगर (गंध द्रव्य विशेष) 4 चोयक-- (चोक औषधि विशेष) 5. कुंकुम, 6. खाड (शक्कर), 7. गुड़, 8. मिश्री आदि द्रव्यों के परिमाण का परिज्ञान होता है। इस प्रकार उन्मानप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिये / विवेचन-इन दो सूत्रों में विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण के दूसरे भेद का वर्णन किया है। धान्यमान और रसमान इन दो प्रमाणों के द्वारा प्रायः सभी स्थूल पदार्थों का परिमाण जाना जा सकता है। फिर भी कुछ ऐसे स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मस्थूल पदार्थ हैं, जिनका निश्चित प्रमाण उक्त दो मानों से निर्धारित नहीं हो पाता है / इसीलिये उन पदार्थों के सही परिमाण को जानने के लिये उन्मानप्रमाण का उपयोग होता है। उन्मान शब्द की व्युत्पत्ति भी कर्मसाधन और करणसाधन-दोनों पक्षों की अपेक्षा से की जा सकती है / इसीलिये सूत्र में तेजपत्र आदि एवं अर्धकर्ष आदि भारों का उल्लेख किया है / तराजू में रखकर जो वस्तु तोली जाती है—'यत् उन्मीयते तत् उन्मानम्' इस प्रकार से कर्मसाधनपक्ष में जब उन्मान की व्युत्पत्ति करते हैं तब तेजपत्र प्रादि उन्मान रूप होते हैं और 'उन्मीयते अनेन इति उन्मानम्' जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है-~-तोला जाता है, वह उन्मान है, इस करणमूलक व्युत्पत्ति से अर्धकर्ष आदि उन्मान रूप हो जाते हैं। अर्धकर्ष तोलने का सबसे कम भार का बांट है। अाजकल व्यवहार में कर्ष को तोला भी कहा जाता है ? क्योंकि मन, सेर, छटांक आदि तोलने के बांट बनाने का आधार यही है। अर्धकर्ष, कर्ष आदि प्राचीन मागधमान में तोलने के बांटों के नाम हैं। तत्त्वार्थ राजवातिक' में तोलने के बांटों और उनके प्रमाण का निर्देश इस प्रकार किया गया है चार मेंहदी के फलों का एक श्वेत सर्षप फल, सोलह सर्षप फल का एक धान्यमाष फल, दो धान्यमाष फल का एक गुंजाफल, दो गुंजाफल का एक रूप्यमाषफल, सोलह रूप्यमाषफल का एक 1. तत्वार्थराजवार्तिक 3138 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org