________________ प्रमाणाधिकार निरूपण || 235 चौड़ा होता है ऐसा बर्गन), कुंडिका (कुंडी) श्रादि में भरे हुए रसों (प्रवाही पदार्थों) के परिमाण का ज्ञान होता है / यह रसमानप्रमाण है। इस प्रकार मानप्रमाण का स्वरूप जानना चाहिये / विवेचन इन दा सूत्रों में रगमानप्रमाण का स्वरूप, धान्यमानप्रमाण से उसका पार्थक्य, प्रवाही पदार्थों के मापने के पात्रों के नाम एवं परिमाण का उल्लेख किया है। धान्यमान और रसमान... इन दोनों प्रकार के मानप्रमाणों द्वारा वस्तु के परिमाण (मापवजन) का परिझान किया जाता है। किन्तु इन दोनों में अंतर यह है कि धान्यमानप्रमाण के द्वारा ठोस पदार्थों का माप ज्ञात किया जाता है और मारे जाने वाले ठोस पदार्थ का शिरोभाग----शिखा - ऊपरी भाग -ऊपर की ओर होता है / लेकिन रमभानामा के द्वारा तरल - द्रव---ययायों के परिमाण का परिज्ञान किये जाने और तरल पदार्थों की शिखा अंतरमुखी--- अंदर की ओर होने से वह सेतिका प्रादि रूप धान्यमान प्रमाण ___ रसमानप्रमाण की प्राद्य इकाई 'चतुःषष्ठिका' और अंतिम मानी' है। चतुःषष्ठिका से लेकर मानी पर्यन्त मापने के पात्रों के नाम क्रमम: पूर्व-पूर्व से दुगुने-दुगुने हैं / जैसे कि चतुःषष्ठिका का प्रमाण चार पल है तो चार पल से दुगना अर्थात पाठ पल द्वात्रिशिका का प्रमाण है ग है। इसी प्रकार शेष षोडशिका आदि के लिये समझना चाहिये। इसी बात को विशेष सुगमता से समझाने के लिये पुनः इन चतुःषष्ठिका आदि पात्रों के माप का प्रमाण बताया है। पश्चानुपूर्वी अथवा प्रतिलोमक्रम से मानी से लेकर चतुःपष्ठिका पर्यन्त के पात्रों का प्रमाण मानी से लेकर पूर्व-पूर्व में प्राधा-आधा कर देना चाहिये। जैसे दो सौ छप्पन पल की मानी को बराबर दो भागों--एक सौ अट्ठाईस, एक सौ अट्ठाईस पलों में विभाजित कर दिया जाये तो वह आधा भाग अर्धमानी कहलायेगा। इसी प्रकार शेष मापों के विषय में समझ लेना चाहिये। रसमानप्रमाण के प्रयोजन के प्रसंग में जिन पात्रों का उल्लेख किया गया है, वे तत्कालीन मगध देश में तरल पदार्थों को भरने के उपयोग में पाने वाले पात्र हैं / ये पात्र मिट्टी, नमड़े एवं धातुओं से बने होते थे / उन्मानप्रमाण 322. से कितं उम्माणे? उम्माणे जगणं उम्मिणिज्जइ। तं जहा---अद्धकरिसो करिसो अद्धपलं पलं अद्धतुला तुला अद्धभारो भारो। दो अद्धकरिसा करिसो, दो करिसा अद्धपलं, दो अद्धपलाइं पलं, पंचुत्तरपलसतिया पंचपलसइया तुला, दस तुलाओ अद्धभारो, वीसं तुलाओ भारो। [322 प्र.] भगवन् ! उन्मानप्रमाण का क्या स्वरूप है ? [322 उ. प्रामन् ! निसका उन्मान किया जाये अथवा जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है (जो बस्तु तुलती है और जिम तराज. कांटा ग्रादि साधनों से तोली जाती है), उन्हें उन्मानप्रमाण कहते हैं / उसका प्रमाण निम्न प्रकार है-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org