________________ [अनुयोगद्वारसूत्र राजेश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सार्थवाह, सेनापति आदि रूप हैं। यह ऐश्वर्यनाम का स्वरूप है / विवेचन-सूत्र में उल्लिखित ऐश्वर्यद्योतक नाम स्वार्थ में 'कष्' प्रत्यय लगाने से निष्पन्न हुए हैं / इसीलिये ये सभी नाम ऐश्वर्यबोधक तद्धितज नाम माने गये हैं। अपत्यनाम 310. से किं तं अवच्चनामे ? . अवञ्चनामे तित्थयरमाया चक्कट्टिमाया बलदेवमाया वासुदेवमाया रायमाया गणिमाया वायगमाया / से तं अवच्चनामे / से तं तद्धिते। [310 प्र.] भगवन् ! अपत्यनाम किसे कहते हैं ? [310 उ.] आयुष्मन् ! अपत्य-पुत्र से विशेषित होने अर्थ में तद्धित प्रत्यय लगाने से निष्पन्ननाम इस प्रकार हैं-तीर्थंकरमाता, चक्रवर्तीमाता, बलदेवमाता, वासुदेवमाता, राजमाता, गणिमाता, वाचकमाता आदि ये सब अपत्यनाम हैं। इस प्रकार से तद्धितप्रत्यय से जन्य नाम की वक्तव्यता है / विवेचन--सूत्रोक्त तीर्थकरमाता आदि नाम अपत्यार्थबोधक तद्धितप्रत्यय निष्पन्न हैं। तित्थयरमाया अर्थात् तीर्थंकरोऽपत्यं यस्याः सा तीर्थंकरमाता-तीर्थकर जिनका पुत्र है, वह तीर्थकरमाता, यहाँ तीर्थकर रूप सुप्रसिद्ध से अप्रसिद्ध माता को विशेषित किया गया है अर्थात तीर्थकरादि के कारण माता विशेषित-- संमानार्ह हुई है / इसी प्रकार चक्रवर्तीमाता आदि नामों का अर्थ समझ लेना चाहिये। उपर्युक्त तद्धितप्रत्ययनिष्पन्ननाम की व्याख्या है / अब धातुज नाम का स्वरूप बतलाते हैं। धातुजनाम 311. से कि तं धाउए ? धाउए भू सत्तायां परस्मैभाषा, एध वृद्धौ, स्पर्द्ध संहर्षे, गाध प्रतिष्ठा-लिप्सयोपॅन्थे च, बाध लोउने / से तं धाउए। [311 प्र.] भगवन् ! धातुजनाम का क्या स्वरूप है ? [311 उ.] आयुष्मन् ! परस्मैपदी सत्तार्थक भू धातु, वृद्धयर्थक एध् धातु, संघर्षार्थक पद्धं धातु, प्रतिष्ठा, लिप्सा या संचय अर्थक गाधू और विलोडनार्थक बाधृ धातु आदि से निष्पन्न भव, एधमान आदि नाम धातुजनाम हैं। विवेचन–सूत्र में धातुजनाम का वर्णन किया है कि जो नाम धातु से निष्पन्न होते हैं वे धातुजनाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org