________________ प्रमाणाधिकार निरूपण] 227 निरुक्तिजनाम 312. से कि तं निरुत्तिए ? निरुत्तिए मह्यां शेते महिषः, समति च रौति च समरः, मुहर्मुहुर्लसति मुसलं, कपिरिव लम्बते त्थच्च करोति कपित्थं, चिदिति करोति खल्लं च भवति चिक्खल्लं, ऊर्ध्वकर्णः उलका, मेखस्य माला भेखला / से तं निरत्तिए / से तं भावप्पमाणे / से तं पमाणनामे / से तं बसनामे / से तं नामे। / नामे त्ति पयं सम्मत्तं / / [312 प्र.] भगवन् ! निरुक्तिजनाम का क्या प्राशय है ? [312 उ.] प्रायमन ! (निरुक्ति से निष्पन्ननाम निरुक्तिजनाम हैं / ) जैसे-मह्यां शेते महिषः-- पृथ्वी पर जो शयन करे वह महिष-भैंसा, भ्रमति रौति इति भ्रमरः--भ्रमण करते हुए जो शब्द करे वह भ्रमर, मुहर्मुहुर्लसति इति मुसलं-जो बारंबार ऊंचा-नीचा हो वह मूसल, कपिरिव लम्बते स्थच्चं (चेष्टा) करोति इति कपित्थं-कपि-बदर के समान वृक्ष की शाखा पर चेष्टा करता है वह कपित्थ, चिदिति करोति खल्लं च भवति इति चिवखल्लं-पैरों के साथ जो चिपके वह चिक्खल (कीचड़), ऊवकर्णः इति उलक:-जिसके कान ऊपर उठे हों वह उलूक (उल्लू), मेखस्य माला मेखला---मेघों की माला मेखला इत्यादि निरुक्तिजतद्धित यह समग्न भावप्रमाणनाम का कथन है। इस प्रकार से प्रमाणनाम, दस नाम और नामाधिकार की वक्तव्यता समाप्त हुई। विवेचन--सूत्र में निरुक्तिजनाम की उदाहरण द्वारा व्याख्या करके भावप्रमाण आदि नामाधिकार की समाप्ति का सूचत किया है / क्रिया, कारक, भेद और पर्यायवाची शब्दों द्वारा शब्दार्थ के कथन करने को निरुक्ति कहते हैं। इस निरुक्ति से निष्पन्न नाम निरुक्तिजनाम कहलाता है। उदाहरण के रूप में प्रस्तुत महिष आदि नाम पृषोदरादिगण से सिद्ध हैं। सूत्रोक्त से तं भावप्पमाणे प्रादि पद उपसंहारार्थक हैं। अब उपक्रम के तीसरे भेद प्रमाणाधिकार का वर्णन करते हैं। प्रमाण के भेद 313. से कि तं पमाणे? पमाणे चन्विहे पण्णत्ते। तं जहा--दन्वप्पमाणे 1 खेत्तप्पमाणे 2 कालपमाणे 3 भावप्पमाणे 4 / [313 प्र.] भगवन् ! प्रमाण का स्वरूप क्या है ? [313 उ.] आयुष्मन् ! प्रमाण चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है। वे चार प्रकार ये हैं-१. द्रव्यप्रमाण, 2. क्षेत्रप्रमाण, 3. कालप्रमाण और 4. भावप्रमाण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org