________________ नामाधिकार निरूपण [195 इस जीवलोक में इससे अधिक अद्भुत और क्या हो सकता है कि जिनवचन द्वारा त्रिकाल संबन्धी समस्त पदार्थ जान लिये जाते हैं। 68,69 विवेचन--अद्भुतरस का लक्षण और उदाहरण इन गाथाओं द्वारा बताया गया है। हर्ष और विषाद की उत्पत्ति को अद्भुतरस के लक्षण बताने का कारण यह है कि आश्चर्यजनक किसी शुभ वस्तु के देखने पर हर्ष और अशुभ वस्तु को देखने पर विषाद की उत्पत्ति होती है। रौद्ररस [5] भयजणणरूव-सइंधकारचिता- कहासमुष्पन्नो। सम्मोह-संभम-विसाय-मरणलिंगो रसो रोहो // 70 // रोद्दो रसो जहाभिउडीविडंबियमुहा ! संदट्ठो?! इय रुहिरमोकिण्ण ! / हणसि पसु असुरणिभा ! भीमरसिय ! अतिरोद्द ! रोद्दोऽसि // 71 // [262-5 भयोत्पादक रूप, शब्द अथवा अंधकार के चिन्तन, कथा, दर्शन आदि से रौद्ररस उत्पन्न होता है और संमोह, संभ्रम, विषाद एवं मरण उसके लक्षण हैं / 70, यथा--- भृकृटियों से तेरा मुख विकराल बन गया है, तेरे दांत होठों को चबा रहे हैं, तेरा शरीर खून से लथपथ हो रहा है, तेरे मुख से भयानक शब्द निकल रहे हैं, जिससे तू राक्षस जैसा हो गया है और पशुओं की हत्या कर रहा है / इसलिये अतिशय रौद्ररूपधारी तू साक्षात रौद्ररस है / 71 विवेचन यहाँ रौद्ररस का लक्षण और उन लक्षणों से युक्त व्यक्ति को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के रूप में प्रस्तुत रूपक से स्पष्ट है कि हिंसा में प्रवृत्त व्यक्ति के परिणाम रौद्र होते हैं और भृकुटि आदि के द्वारा ही उन परिणामों की रौद्ररूपता आदि का बोध होता है। यद्यपि भयजनक पिशाचादि के रूप के दर्शन, स्मरण आदि से संमोहादि लक्षण वाले भयानकरस की उत्पत्ति होती है, तथापि उनके रौद्रपरिणामों का बोध कराने का कारण होने से इसमें रौद्रता की विवक्षा की है। __ शब्दार्थ-संमोह—विवेकशून्यता-विवेकविकलता, संभम-संभ्रम व्याकुलता, भिउडीभ्रकुटि-भौंहों को ऊपर चढ़ाना / विडंबिय-विडम्बित-विकराल, विकृत / रुहिरमोकिण्णरुधिराकीर्ण-खून से लथपथ / असुरणिभा--असुरनिभ-असुर-राक्षस के जैसे (हो रहे हो) / भीमरसिय-भीमरसित-भयोत्पादक शब्द बोलने वाला / अतिरोद्दो- अतिरौद्र---अतिशय रौद्र रूपधारी। बोडनकरस [6] विणयोक्यार-गुज्झ-गुरुदारमेरावतिक्कमुप्पण्णो / वेलणओ नाम रसो लज्जा-संकाकरणलिंगो // 72 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org