________________ 194] [अनुयोगद्वारसूत्र विवेचन--सूत्रकार ने इन दो गाथाओं में से पहली में अननुशय, धृति, पराक्रम प्रादि वीररस के बोधक चिह्नों का उल्लेख किया है और दूसरी में वीररस के लक्षणों से युक्त व्यक्ति को उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया है / शत्रु दो प्रकार के हैं--पान्तरिक (भाव) और बाह्य (द्रव्य) / मोक्ष का प्रतिपादक होने से प्रस्तुत शास्त्र में काम, क्रोध आदि भाव-शत्रुओं को जीतनेवाले महापुरुष को वीर कहा है / यही दृष्टि प्रागे के उदाहरणों के लिये भी जानना चाहिये / शृंगाररस [3] सिंगारो नाम रसो रतिसंजोगाभिलाससंजणणो / मंडण - विलास-विब्बोय-हास-लीला-रमालगो // 66 / / सिंगारो रसो जहा महरं विलासललियं हिययुम्मादणकरं जुवाणाणं / सामा सदुद्दामं दाएती मेहलादाम / / 67 // [262-3] शृंगाररस रति के कारणभूत साधनों के संयोग की अभिलाषा का जनक है तथा मंडन, विलास, विब्बोक, हास्य-लीला और रमण ये सब शृंगाररस के लक्षण हैं / 66 [ का बोधक उदाहरण है-- कामचेष्टाओं से मनोहर कोई श्यामा (सोलह वर्ष की तरुणी) क्षुद्र घटिकाओं से मुखरित होने से मधुर तथा युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है / 67 विवेचन--पूर्व की तरह इन दो गाथानों में सोदाहरण शृगाररस का वर्णन किया गया है। पहली गाथा में शृगार रस की संभव चेष्टाओं का और दूसरी में उन चेष्टाओं से युक्त व्यक्ति (नायिका) को उदाहारण रूप में प्रस्तुत किया गया है। गाथोक्त कतिपय शब्दों की व्याख्या-रतिसंजोगाभिलाससंजणणो-- रति---सुरतक्रीडा के कारणभूत ललना आदि के साथ संगम की इच्छा को उत्पन्न करने वाला / मंडण--अलंकार-ग्राभूषणों आदि से शरीर को अलंकृत करना--सजाता / विलास-कामोत्तेजक नेत्रादि की चेष्टायें। विब्बोय-- विकारोत्तेजक शारीरिक प्रवृत्ति / लीला---गमनादि रूप रमणीय चेष्टा / रमण-- क्रीडा करना। अद्भुतरस [4] विम्हयकरो अयुब्बो व भूयपुत्वो व जो रसो होइ / सो हास-विसायुप्पत्तिलक्खणो अब्भुतो नाम / / 68 // अब्भुओ रसो जहा अन्नं कि प्रत्थि जीवलोम्मि। जं जिणवयणेणत्या तिकालजुत्ता वि णज्जति ! // 66 // [262-4] पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारीआश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्भुत रस है। हर्ष और विषाद की उत्त्पत्ति अद्भुतरस का लक्षण हैः। जैसे-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org