________________ 190 [अनुयोगद्वारसूत्र है तथा सप्ततंत्रिका वीणा में 49 तानें होती हैं और इसी प्रकार एकतंत्रिका अथवा त्रितंत्रिका वीणा के साथ कंठ से गाई जाने वाली तानें भी 49 होती हैं। इस प्रकार सप्तनाम का वर्णन है। अब क्रमप्राप्त अष्टनाम का निरूपण करते हैं..अष्टनाम 261. [1] से किं तं अटुनामे ? अहनामे अट्टविहा गयणविभत्ती पण्णत्ता / तं जहानिइसे पढमा होति 1 बितिया उबदेसणे 2 // तइया करणम्मि कया 3 चउत्थी संपयाषणे 4 / / 57 / / पंचमी य अपायाणे 5 छट्ठी सस्सामिवायणे 6 / ससमी सण्णिधाणत्थे 7 अट्ठमाऽऽमंतणी भवे 8 / / 58 // [261-1 प्र.] भगवन् ! अष्ट नाम का क्या स्वरूप है ? [261-1 उ.] आयुष्मन् ! आठ प्रकार की वचनविभक्तियों को अष्ट नाम कहते है / वचनविभक्ति के वे आठ प्रकार यह हैं 1. निर्देश-प्रतिपादक अर्थ में प्रथमा विभक्ति होती है। 2. उपदेशक्रिया के प्रतिपादन में द्वितीया विभक्ति होती है। 3. क्रिया के प्रति साधकतम कारण के प्रतिपादन में तृतीया विभक्ति होती है / 4. संप्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है। 5. अपादान (पृथक्ता) बताने के अर्थ में पंचमी विभक्ति होती है। 6. स्व-स्वामित्वप्रतिपादन करने के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है। 7. सनिधान (अाधार) का प्रतिपादन करने के अर्थ में सप्तमी विभक्ति होती है। 8. संबोधित, आमंत्रित करने के अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है / 57, 58 विवेचनः-इन दो गाथाओं में अष्टनाम के रूप में पाठ वचनविभक्तियों का निरूपण किया है। बचमविभक्ति-जो कहे जाते हैं वे वचन हैं और विभक्ति अर्थात् कर्ता, कर्म आदि रूप अर्थ जिसके द्वारा प्रगट किया जाता है / अत: वचनों-पदों की विभक्ति को वचनविभक्ति कहते हैं / यहाँ वचनविभक्ति से सुवन्त (संज्ञा, सर्वनाम) रूप प्रथमान्त आदि पदों का ग्रहण जानना चाहिये, तिङ्गन्त रूप आख्यात विभक्तियों का नहीं / यथाक्रम आठ वचनविभक्तियों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है निद्देसे पढमा प्रतिपादक अर्थमात्र के प्रतिपादन करने को निर्देश कहते हैं। प्रतिपादक अर्थ के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। जिनमें जाति, व्यक्ति, लिंग, संख्या, कारक इन पांच को प्रतिपादक के अर्थ में स्वीकार किया है और इनमें भी जाति एवं व्यक्ति रूप अर्थ मुस्प हैं। इसका निर्देश करने में 'सु, ओ, जस्' यह प्रथमा विभक्ति होती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org