________________ नामाधिकार निरूपण] गीतगायक के प्रकार [11] केसी गायति महरं ? केसी गायति खरं च रुक्खं च ? / केसी गायति चउर ? केसी य विलंबियं ? दुतं केसी ? विस्सरं पुण केरिसी? // 54 // [पंचपदी] सामा गायति महुरं, काली गायति खरं च रुक्खं च / गोरी गायति चउरं, काणा य विलंबियं, दुतं अंधा, विस्सरं पुण पिंगला // 55 // [पंचपदी] [२६०-११-अ. प्र. कौन स्त्री गधर स्वर में गीत गाती है ? परुष और रूक्ष स्वर में कौन गाती है ? चतुराई से कौन गाती है ? विलंबित स्वर में कौन गाती है ? दुत स्वर में कौन गाती है ? तथा विकृत स्वर में कौन गाती है ? [२६०-११-अ. उ.] श्यामा (षोडशी) स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, कृष्णवर्णा स्त्री खर (परुष) और रूक्ष स्वर में गाती है, गौरवर्णा स्त्री चतुराई से गीत गाती है, कानी स्त्री विलंबित (मंद) स्वर में गाती है / अंधी स्त्री शीघ्रता से गीत गाती है और पिंगला (कपिला) विकृत स्वर में गीत गाती है। 54, 55 विवेचन--इन दो गाथाओं द्वारा परोक्ष में गीत स्वरों द्वारा गायक की योग्यता, स्थिति आदि का अनुमान लगाने का संकेत किया है / कुछ भिन्नता के साथ अन्य प्रतियों में गाथा 55 इस रूप में अंकित है-- गोरी गायति महुरं सामा गायइ खरं च रूवखं च / काली गायइ चउर काणा य विलंवियं दुतं अंधा / / विस्सरं पुण पिंगला। इस प्रकार से सप्त स्वरमंडल संबन्धी आवश्यक वर्णन करने के अनन्तर अब उपसंहार करते हैं। उपसंहार [11 आ] सत्त सरा तयो गामा मुच्छणा एक्कवीसति / ताणा एपूणपण्णासं सम्मत्तं सरमंडलं // 56 / / सेतं सत्तनामे / [२६०-११-या इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनायें होती हैं / प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिये उनके (74 7 = 49) उनपचास भेद हो जाते हैं / इस प्रकार स्वरमंडल का वर्णन समाप्त हुआ / 56 स्वरमंडल के वर्णन की पूर्णता के साथ सप्तनाम की वक्तव्यता भी समाप्त हुई / विवेचन—यह गाथा सप्तस्वर और सप्तनाम के वर्णन की समाप्ति सूचक है। उनपचास तानें होने का कारण यह है कि षड्ज आदि सात स्वरों में से प्रत्येक स्वर सात तानों में गाया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org