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________________ 185] [अनुयोगद्वारसूत्र [10 ए] निहोसं सारवंतं च हेउजुत्तमलंकियं / उवणीयं सोवयारं च मियं महुरमेव य / / 51 // [२६०-१०-ए] गेय पदों के आठ गुण इस प्रकार भी हैं१. निर्दोष-अलीक, उपघात आदि बत्तीस दोषों से रहित होना / 2. सारवंत-सारभूत विशिष्ट अर्थ से युक्त होना। 3. हेतुयुक्त-अर्थसाधक हेतु से संयुक्त होना। 4. अलंकृत-काव्यगत उपमा-उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों से युक्त होना / 5. उपनीत--उपसंहार से युक्त होना। इ.सोपचार अविरुद्ध अलज्जनीय अर्थ का प्रतिपादन करना। 7. मित-अल्पपद और अल्पअक्षर वाला होना। 8. मधुर-सुश्राव्य शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की अपेक्षा प्रिय होना / 51 विवेचन-सूत्रकार ने 'छद्दोसे अट्ठ गुणे' इन पदों के अनुसार गीत संबन्धी दोषों और विभिन्न अपेक्षामों से गुणों का वर्णन किया है / वर्णन करने का कारण यह है कि गायक गीतविधाओं को जानता हुअा भी दोषों का निराकरण और गुणों का समायोजन करने का लक्ष्य नहीं रखे तो वह जनप्रिय और संमाननीय नहीं हो पाता है / गीत के वृत्त-छन्द [10 ऐ] समं असमं चेव सम्वत्थ विसमं च जं। तिण्णि वित्तप्पयाराई चउत्थं नोवलगभइ // 52 // [२६०-१०ऐ] गीत के वृत्त-छन्द तीन प्रकार के होते हैं-- 1. सम-जिसमें गीत के चरण और अक्षर सम हों अर्थात् चार चरण हों और उनमें गुरु-लघु अक्षर भी समान हों, अथवा जिसके चारों चरण सरीखे हों। 2. अर्धसम-जिसमें प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण समान हों। 3. सर्वविषम-जिसमें सभी चरणों में अक्षरों की संख्या विषम हो, जिसके चारों चरण विषम हों। इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं पाया जाता है / 52 गीत की भाषा [10 ओ] सक्कया पायया चेव भणिईओ होंति दुण्णि उ। सरमंडलम्मि गिज्जंते पसत्था इसिभासिया // 53 // [२६०-१०-प्रो] भणतियां-गीत की भाषायें दो प्रकार की कही गई हैं—संस्कृत और प्राकृत / ये दोनों प्रशस्त एवं ऋषिभाषित हैं और स्वरमंडल में पाई जाती है / 53 विवेचन---उक्त दो गाथाओं में गीत के छन्दों और भाषायों का विचार किया गया है। अब 'सो गाहिति' पद के अनुसार कौन किस प्रकार से गाता है ? इसका प्रश्नोत्तर विधा द्वारा निरूपण करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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