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________________ नामाधिकार निरूपण] 1185 1. नन्दी, 2. क्षुद्रिका, 3. पूरिमा, 4. सुद्धगांधारा, 5. उत्तरगांधारा, 6. मुष्ठुतर-मायामा और 7. उत्तरायता–कोटिमा / 41-42 / (इस प्रकार से सात स्वरों के तीन ग्राम और उनकी सात-सात मूर्च्छनाओं के नाम जानने चाहिये / ) विवेचन-सूत्रकार ने सप्तस्वरों के तीन ग्राम और प्रत्येक की मूर्च्छनाओं के नाम गिनाये हैं। मूर्च्छनाओं के समुदाय को ग्राम कहते हैं। वे षड्ज प्रादि के भेद से तीन प्रकार के हैं / प्रत्येक ग्राम की सात-सात मूर्च्छनाएं होने से सब मिलकर इक्कीस हैं। मूर्च्छना अर्थात् गायक का गीत के स्वरों में तल्लीन-~-मूच्छित-सा हो जाना। मंगी प्रादि इक्कीस मुर्छनामों की विशेष जानकारी के लिये भरतमुनि का नाट्यशास्त्र आदि ग्रन्थ देखिये। सप्त स्वरोत्पत्ति प्रादि विषयक जिज्ञासाएँ : समाधान [10] सत्त स्सरा कतो संभवंति ? गीयस्स का हवति जोणी?। कतिसमया ऊसासा ? कति वा गीयस्स आगारा? // 43 // सत्त सरा नाभीनो संभवंति, गीतं च रुनजोणीयं / पायसमा उस्सासा, तिणि य गोयस्स आगारा // 44 // प्रादिमिउ आरभंता, समुन्वहंता य मज्झगारम्मि / अवसाणे य झवेता, तिनि वि गीयस्स आगारा // 45 // [२६०-१०-अ] प्र.- सप्त स्वर कहाँ से--किससे उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? इसके उच्छ्वासकाल का समयप्रमाण कितना है ? गीत के कितने प्रकार होते हैं ? उत्तर–सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं। रुदन गीत की योनि–जाति है। पादसमजितने समय में किसी छन्द का एक चरण गाया जाता है, उतना उसका (गीत का) उच्छ्वासकाल होता है / गीत के तीन प्रकार होते हैं आदि में मृदु, मध्य में तीव्र (तार) और अंत में मंद / इस प्रकार से गीत के तीन प्राकार जानने चाहिए। 43, 44, 45 . विवेचन-इन तीन गाथानों में से पहली गाथा में गीत के स्वरों के उत्पत्तिस्थान आदि संबन्धी चार प्रश्न हैं और अगली दो गाथानों में प्रश्नों के उत्तर दिये हैं। ___ गाथागत विशेष शब्द-रुन्नजोणियं-- रुदितयोनिक-गीत की योनि रुदन है, अथवा रोने की जाति जैसा है / आगारा---ग्राकारा ---स्वरूपविशेष / अवसाणे-अवसाने-अंत में। झर्वता--- क्षपयन्त: समाप्त करते समय। गीतगायक की योग्यता [10 आ] छद्दोसे अट्ठ गुणे तिण्णि य वित्ताणि दोणि भणितीयो। जो गाही सो गाहिति सुसिक्खतो रंगमज्झम्मि / / 46 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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