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________________ 194] [अनुयोगद्वारसूत्र 7. निषादस्वर वाला पुरुष चांडाल, वधिक, मुक्केबाज, गोघातक, चोर और इसी प्रकार के दूसरे-दूसरे पाप करने वाला होता है / 38 विवेचन-इन गाथाओं में व्यक्ति के हाव-भाव-विलास, प्राचार-विचार-व्यवहार, कुल-शीलस्वभाव का बोध कराने में स्वर- बागव्यवहार के योगदान का संकेत किया गया है। बोलने मात्र से ही व्यक्ति के गुणावगुण का अनुमान लगाया जा सकता है। शिष्ट सरल जन प्रसादगुणयुक्त कोमलकान्तपदावली का प्रयोग करते हैं, जबकि धूर्त, वंचक व्यक्तियों के बोलचाल में कर्णकटु, अप्रिय और भयोत्पादक शब्दों की बहुलता होती है एवं उनकी प्रवृत्ति भी वाग्व्यवहार के अनुरूप ही होती है / सप्तस्वरों के ग्राम और उनकी मूर्छनाएँ [6] एतेसि णं सत्तण्हं सराणं तयो गामा पण्णत्ता / तं जहा-सज्जग्गामे 1 मज्झिमम्गामे 2 गंधारग्गामे 3 // [260-6] इन सात स्वरों के तीन ग्राम कहे गये हैं / वे इस प्रकार१. षड्जग्राम, 2. मध्यमग्राम, 3. गांधारग्राम / [7] सज्जग्गामस्स णं सत्त मुच्छणाम्रो पणत्तानो / तं जहा-- मंगी कोरन्वीया हरी य रयणी य सारकंता य। छट्ठी य सारसी नाम सुद्धसज्जा य सत्तमा // 39 // [260-7] षड्जग्राम की सात मूर्च्छनाएँ कही गई हैं। उनके नाम हैं 1. मंगी, 2. कौरवीया, 3. हरित्, 4. रजनी, 5. सारकान्ता, 6. सारसी और 7. शुद्धषड्ज। 39 [8] मज्झिमगामस्स गं सत्त मुच्छणामो पण्णत्ताओ। तं जहा-- उत्तरमंदा रयणी उत्तरा उत्तरायसा (ता)। अस्सोकता य सोवीरा अमीरू भवति सत्तमा // 40 // [260-8] मध्यमग्राम की सात मूर्च्छनाएँ कही हैं / जैसे 1. उत्तरमंदा, 2. रजनी, 3. उत्तरा, 4. उत्तरायशा अथवा उत्तरायता, 5. अश्वक्रान्ता, 6. सौवीरा, 7. अभिरुद्गता / 40 [] गंधारग्गामस्स णं सत्त मुच्छणाम्रो पण्णत्ताओ / तं जहा नंदी य खुड्डिमा पूरिमाय चउथी य सुद्धगंधारा। उत्तरगंधारा वि य पंचमिया हवइ मुच्छा उ // 41 // सुठुत्तरमायामा सा छट्ठा नियमसो उ णायब्वा। अहउत्तरायता कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा // 42 // [260-9] गांधारग्राम की सात मूर्च्छनाएँ कही गई हैं। उनके नाम ये हैं--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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