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________________ नामाधिकार निरूपण] [179 जीवों में प्राप्त भंगों का कारण सहित स्पष्टीकरण इस प्रकार है--- 1. क्षायिक और पारिणामिकभाव से निष्पन्न द्विकसंयोगी भंग सिद्ध जीवों में पाया जाता है। क्योंकि उनमें पारिणामिकभाव जीवत्व और क्षायिकभाव अनन्त ज्ञान-दर्शन प्रादि हैं। 2. औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभाव के संयोग से निष्पन्न त्रिसंयोगी भेद चातुर्गतिक संसारी जीवों में पाया जाता है / क्योंकि उनमें गतियां प्रौदयिक रूप, भावेन्द्रियां क्षायोपशमिक रूप और जीवत्व आदि पारिणामिकभाव रूप हैं। 3. औदयिक-नायिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न त्रिसंयोगी भंग भवस्थ केवलियों में पाया जाता है / वह इस प्रकार है-औदयिकभाव मनुष्यगति, क्षायिकभाव केवलज्ञान आदि और पारिणामिकभाव जीवत्व रूप से उनमें है। 4. औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न चतु:संयोगी भंग चतुर्गतिक जीवों में पाया जाता है / इसमें गति प्रोदयिकभाव, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव, भावेन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव रूप है। 5. औदयिक-औषशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिक के संयोग वाला चतु:संयोगी भंग भी चारों गतियों में पाया जाता है। इसका प्राशय भी पूर्वोक्त चतुःसंयोगी भंग के अनुरूप है। विशेष इतना है कि क्षायिकभाव के स्थान पर औपशमिकभाव में औपशमिक सम्यक्त्व का ग्रहण करना चाहिये / 6. पंचसंयोगी सान्निपातिकभाव प्रौदयिक प्रादि पंच भावों का संयोग रूप है और वह क्षायिक सम्यग्दृष्टि उपशमश्रेणी में वर्तमान मनुष्यों में पाया जाता है / वह इस प्रकार मनुष्यगति प्रोदयिकभाव, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव, औपशमिक चारित्र औपशमिकभाव, भावेन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव रूप और जीवत्व पारिणामिकभाव रूप जानना चाहिये। इस प्रकार छह नाम के रूप में छह भावों का निरूपण करने के अनन्तर अब क्रमप्राप्त सप्तनाम की प्ररूपणा करते हैं / सप्तनाम 260. [1] से कि तं सत्तनामे ? सत्तनामे सत्त सरा पण्णत्ता / तं जहा सज्जे 1 रिसमे 2 गंधारे 3 मज्झिमे 4 पंचमे सरे 5 / धेवए 6 चेव णेसाए 7 सरा सत्त वियाहिया // 25 // [260-1 प्र.] भगवन् ! सप्तनाम का क्या स्वरूप है ? [260-1 उ.] आयुष्मन् ! सप्तनाम सात प्रकार के स्वर रूप है / स्वरों के नाम इस प्रकार हैं—१. षड्ज, 2. ऋषभ, 3. गांधार, 4. मध्यम, 5. पंचम, 6. धैवत और 7. निषाद, ये सात स्वर जानना चाहिये / 25 विवेचन--सूत्र में सप्तनाम के रूप में सात स्वरों का वर्णन किया है। वह इसलिये कि पुरुषों की बहत्तर और स्त्रियों की चौसठ कलाओं में शकुनिरुत गीत, संगीत, वाद्यवादन आदि का समावेश किया गया है और वे स्वर ध्वनिविशेषात्मक हैं / सात स्वरों के लक्षण इस प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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