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________________ 180] [अनुयोगद्वारसूत्र 1. षड्ज-छह से जन्य / अर्थात् स्वरोत्पत्ति के कारणभूत कंठ, वक्षस्थल, तालु, जिह्वा, दन्त और नासिका इन छह स्थानों के संयोग से उत्पन्न होने वाले स्वर को षड्ज कहते हैं। 2. ऋषभ-ऋषभ का अर्थ बैल है / अतः नाभि से उत्थित और कंठ एवं शिर से समाहत होकर (टकराकर) ऋषभ के समान गर्जना रूप स्वर / 3. गांधार-गंधवाहक स्वर / नाभि से समुत्थित एवं कंठ व हृदय से समाहत तथा नाना प्रकार की गंधों का वाहक स्वर गांधार कहलाता है। 4. मध्यम-शरीर के मध्यभाग से उत्पन्न होने वाला स्वर / अर्थात् शरीर के मध्यभागनाभिप्रदेश में उत्पन्न हुई और उरस् एवं हृदय से समाहत होकर पुन: नाभिस्थान में आई हुई वायु द्वारा जो उचनाद होता है, वह मध्यम स्वर है / 5. पंचम-जिस स्वर में नाभिस्थान से उत्पन्न वायु वक्षस्थल, हृदय, कंट और मस्तक में व्याप्त होकर स्वर रूप में परिणत हो, उसे पंचम स्वर कहते हैं / 6. धैवत–पूर्वोक्त सभी स्वरों का अनुसंधान करने वाला स्वर धैवत कहलाता है / 7. निषाद-सभी स्वरों का अभिभव करने वाला स्वर / यह स्वर समस्त स्वरों का पराभव करने वाला है / प्रादित्य (सूर्य) इसका स्वामी कहलाता है। संगीतशास्त्र में इन स्वरों का बोध कराने के लिये-'सरेगमपधनी' पद दिया है / पदोक्त एकएक अक्षर पृथक्-पृथक् स्वर का बोधक है / जैसे 'स' षड्ज स्वर का बोधक है / इसी प्रकार शेष रे-ग-मप-ध-नीअक्षर ऋषभ आदि स्वरों के बोधक हैं। ये सातों स्वर जीव और अजीव दोनों पर आश्रित हैं। अर्थात् जीव और अजीव के माध्यम से इनका प्रादुर्भाव हो सकता है / स्वर सात ही क्यों यद्यपि स्वरोत्पत्ति के साधन जीभ आदि त्रस-द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में पाये जाते हैं और इन जीवों के असंख्यात होते से स्वरों की संख्या भी असंख्यात है। फिर भी उन सभी स्वरों का सामान्य रूप से इन षड्ज प्रादि सात स्वरों में अन्तर्भाव हो जाने से मौलिक स्वरों की संख्या सात से अधिक नहीं है। सप्त स्वरों के स्वरस्थान [2] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरहाणा पण्णत्ता / तं जहा सज्जं च अग्गजोहाए 1 उरेण रिसह सरं 2 / कंठुग्गतेण गंधारं 3 मज्मजोहाए मज्झिम 4 // 26 // नासाए पंचमं ब्रूया 5 दंतोट्टेण य घेवतं 6 / भमुहक्लेवेण सायं 7 सरढाणा वियाहिया / / 27 // [260-2] इन सात स्वरों के सात स्वर (उच्चारण) स्थान कहे गये हैं / वे स्थान इस प्रकार गी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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