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________________ नामाधिकार निहाण] [173 [2552 उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति प्रौदयिकभाव, उपशांतकषाय औपशमिक और इन्द्रियां क्षायोपामिकभाव, इस प्रकार प्रौदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप जानना चाहिये / 2 / कयरे से णामे उदइए उवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने ? उदए त्ति मणसे उवसंता कसाया पारिणामिए जोर, एस णं से णामे उदइए उपसमिए पारिणामियनिष्पन्ने 3 / [255-3 प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [255-3 उ.] अायुष्मन् ! मनुष्यगति प्रौदयिक, उपशांतकषाय औपशमिक और जीवत्व पारिशामिक भाव, इस प्रकार से प्रौदयिक-औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्न भाव का स्वरूप है / 3 कयरे से णामे उदइए खइए खओवसमनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणसे खइयं सम्मत्तं खोवसमियाई इंदियाई. एस णं से णामे उदइए खइए खओवसमनिष्पन्ने 4 / [255-4 प्र.] भगवन् ! औदयिक-क्षायिक-क्षायोगशमिकनिष्पन्न सानिपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [255-4 उ.] अायुष्मन् ! मनुष्यगति प्रौदयिक, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव और इन्द्रियां क्षायो शमिकभाव यह औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। 4 / कतरे से णामे उदइए खइए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए पारिणामियनिप्पन्ने 5 / [255-5 प्र.] भगवन् ! प्रौदयिक-क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [255-5 उ.] आयुप्मन् ! मनुष्यगति प्रौदयिकभाव, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकभाव और जीवत्व पारिणामिकभाव इस प्रकार का प्रौदयिक-क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। 5 कतरे से णामे उदइए खोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए ति मणसे खयोवस मियाई इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए खओवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने 6 / [255-6 प्र. भगवन् ! प्रौदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [255-6 उ.] आयुष्मन् ! मनुष्यगति प्रौदयिक, इन्द्रियां क्षायोपशमिक और जीवत्व पारिणामिक, यह औदयिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप जानना चाहिये / 6 कतरे से णामे उपसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खोवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उवसमिए खइए खोवसमनिप्पन्ने 7 / [255-7 प्र.] भगवन् ! औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? [255-7 उ.] आयुष्मन् ! उपशांतकषाय औपशमिकभाव, क्षायिकसम्यक्त्व क्षायिकभाव, इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव, यह प्रौपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव है / 7 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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