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________________ नामाधिकार निरूपण [171 प्रश्न-भगवन् ! प्रौदयिक-पारिणामिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग का क्या स्वरूप है ? उत्तर-आयुष्मन् ! प्रौदयिकभाव में मनुष्यगति और पारिणामिकभाव में जीवत्व को ग्रहण करना प्रौदयिक-पारिणामिकभाव का स्वरूप है / 4 प्रश्न-भगवन् ! औपशमिक-क्षयसंयोगनिम्पन्नभाव का स्वरूप क्या है ? उत्तर–प्रायुष्मन् ! उपशांतकषाय और क्षायिक सम्यक्त्व यह औपशमिक-क्षायिकसंयोगज भाव का स्वरूप है / 5 प्रश्न-भगवन् ! प्रौपशमिक-क्षयोपशमनिष्पन्नभाव के संयोग का क्या स्वरूप है ? उत्तर-पायुष्मन् ! प्रौपशमिकभाव में उपशांतकषाय और क्षयोपशमनिष्पन्न में इन्द्रियां यह औपशमिक-क्षयोपशमनिष्पन्नभाव का स्वरूप है / 6 प्रश्न—भगवन् ! औपशमिक-पारिणामिकसंयोगनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? उत्तर -ग्रायष्मन् ! प्रीपशमिकभाव में उपशांत कषाय और पारिणामिकभाव में जीवत्व यह औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप है / 7 प्रश्न - भगवन् ! क्षायिक और क्षयोपशमनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? उत्तर - अायुष्मन् ! क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायोपसमिक इन्द्रियां यह क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप जानना चाहिये / 8 प्रश्न-भगवन् ! क्षायिक और पारिणामिकनिष्पन्न का क्या स्वरूप है ? उत्तर--प्रायुष्मन् ! क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व और पारिणामिकभाव में जीवत्व का ग्रहण क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप है। 9 प्रश्न-भगवन् ! क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावसंयोगज का क्या स्वरूप है ? उत्तर --पायुष्मन् ! क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व को ग्रहण किया जाये तो यह क्षायोपशमिक-पारिणामिकभाव का स्वरूप है / 10 इस प्रकार से यह द्विकसंयोगी सान्निपातिक भाव के दस भंगों का स्वरूप है। विवेचन--इन दो सूत्रों में से पहले में द्विकसंयोगी दस सात्रिपातिकभावों के नाम और दूसरे में 'कतरे से नामे .......' प्रश्न और 'एस णं से णामे......' उत्तर द्वारा उन-उन भावों का उदाहरण सहित स्वरूप स्पष्ट किया है। इन दस संयोगज नामों में औदयिक के साथ उत्तरवर्ती प्रौपशमिक प्रादि चार भावों में से एक-एक को जोड़ने से चार भंग औपशमिक के साथ, क्षायिक प्रादि तीन भावों के संयोग से तीन भंग, क्षायिक के साथ क्षायोपशमिक आदि दो भावों के संयोग से दो भंग और क्षायोपशमिक के साथ अंतिम पारिणामिकभाव को जोड़ने से एक भंग बनता है। कुल मिलाकर इनका जोड़ (4+3+2 +1=10) दस है। इन दस भगों को स्वरूपव्याख्या के प्रसंग में उल्लिखित मनुष्य, उपशांतकषाय भाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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