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________________ 17.] [अनुयोगद्वारसूत्र कतरे से नामे उदइए खयनिप्पन्ने ? स्वए त्ति मणूसे खतियं सम्मत्तं, एस णं से नामे उदइए खयनिप्पन्ने 2 / कतरे से गामे उवइए खयोवसमनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणसे खयोक्स मियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उदइए खयोवसमनिप्पन्ने 3 / कतरे से णामे उदइए पारिणामियनिष्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए पारिणामियनिप्पन्ने 4 / कयरे से णामे उपसमिए खयनिष्पन्ने ? उपसंता कसाया खइयं सम्मत्तं, एस णं से णामे उपसमिए खयनिप्पन्ने 5 / कयरे से णामे उपसमिए खओवसमनिप्पण्णे ? उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उपसमिए खओवसमनिप्पन्ने 6 / कयरे से जामे उपसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उवसमिए पारिणामियनिष्पन्ने 7 / कतरे से गामे खइए खओक्समियनिप्पन्ने ? खइयं सम्मत्तं खयोवसमियाइं इंदियाई, एस पं से णामे खइए खयोवसमनिप्पन्ने 8 / कतरे से जामे खइए पारिणामियनिप्पन्ने ? खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे खइए पारिणामियनिप्पन्ने 9 / कतरे से णामे खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? / खयोवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जोवे, एस णं से गामे खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने 10 // [253 प्र. भगवन् ! प्रौदयिक-ग्रोयमिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग का स्वरूप क्या उत्तर--पायुष्मन् ! प्रौदयिक-औपशमिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग का यह स्वरूप है--ौदयिकभाव में मनुष्यगति और प्रौपशमिकभाव में उपशांत कषाय को ग्रहण करने रूप औदयिक-औपशमिकभाव है / 1 प्रश्न—भगवन् ! औदयिक-क्षायिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? उत्तर–प्रायुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति और क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व का ग्रहण औदयिकक्षायिकभाव है / 2 / / प्रश्न-भगवन् ! औदयिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का क्या स्वरूप है ? उत्तर-आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति और क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रिया जानना चाहिये / यह औदयिक-क्षायोपशामिकभाव का स्वरूप है / 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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