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________________ नामाधिकार निरूपण] [169 सान्निपातिकभाव 251. से कि तं सण्णिवाइए ? सण्णिवाइए एतेसि चेव उदइय-उवसमिय-खइय-खओवसमिय-पारिमामियाणं भावाणं दुयसंजोएणं तियसंजोएणं चउक्कसंजोएणं पंचगसंजोएणं जे निप्पज्जति सव्वे से सनिवाइए नामे। तत्थ णं दस दुगसंजोगा, दस तिगसंजोगा, पंच चउक्कसंजोगा, एक्के पंचगसंजोगे / [251 प्र. भगवन् ! मानिपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [251 उ.] अायुप्मन् ! औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक, इन पांचों भावों के द्वि कसंयोग, त्रिकसंयोग, चतु:संयोग और पंचसंयोग से जो भाव निम्पन्न होते हैं वे मन मान्निपातिकभाव नाम है / / उनमें से द्विकसंयोगज दस, त्रिकसंयोगज दस, चतु संयोगज पांच और पंचसंयोगज एक भाव हैं / इस प्रकार सब मिलाकर ये छब्बीस सान्निपातिकभाव हैं। विवेचन-सूत्र में सान्निपातिकभाव का स्वरूप बतलाया है। पूर्वोक्त प्रौदयिक आदि पांच भावों में से दो प्रादि भावों के मिलने से जो-जो भाव निष्पन्न होते हैं, वे सब सान्निपातिकभाव हैं। ___ इन औदयिक आदि पांच भावों के द्विक, त्रिक, चतुष्क और पंच संयोगज छब्बीस भंगों में से जीवों में कुल छह भंग पाये जाते हैं। शेष बीस प्ररूपणा मात्र के लिये ही हैं। सान्निपातिकभाव दो आदि भावों के संयोगजरूप हैं। अतः अब यथाक्रम उन द्विकसंयोगज आदि सान्निपातिकभावों का निरूपण करते हैं। द्विकसंयोगज सान्निपातिकभाव 252. तत्थ णं जे से दस दुगसंजोगा ते णं इमे–अस्थि गामे उदइए उवसमनिप्पण्णे' 1 अस्थि णामे उदइए खयनिप्पण्णे 2 अत्थि णामे उदइए खओवसमनिप्पण्णे 3 अस्थि णामे उदइए पारिणामियनिप्पण्णे 4 अस्थि णामे उवसमिए खयनिप्पण्णे 5 अस्थि गामे उवसमिए खओवसमनिप्पण्णे 6 अस्थि णामे उबसभिए पारिणामियनिप्पन्ने 7 अस्थि णामे खइए खओवसमनिप्पन्ने 8 अस्थि णामे खइए पारिणामियनिष्पन्ने 9 अस्थि णामे खयोवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने 10 / [252 ] दो-दो के संयोग से निष्पन्न दस भंगों के नाम इस प्रकार हैं २.प्रौदयिक-ग्रौपशामिक के संयोग से निष्पन्न भाव 2. औदयिक-क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव 3. औदयिक-क्षायोपशामिक के संयोग से निष्पन्न भाव 4. औदयिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव 5. प्रौपशमिक-क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव 6. प्रौपशमिक-क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव 7. प्रौपशामिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव 8. क्षायिक-क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव 9. क्षायिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन भाव तथा 10. श्रायोपशमिकपारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव / 253. कतरे से नामे उदइए उवसमनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणसे उवसंता कसाया, एस णं से णामे उदइए उवसमनिप्यन्ने 1 / 1. पाठान्तर---निष्फण्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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