SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माणाधिकार निरुपण उपकावाया विसावाघा गज्जियं विज्ज णिग्घाया जवया जक्खाबित्ता मिया महिया रयुग्धाओ चंदोवरागा सूरोयरागा चंदपरिवेसा सूरपरिवेसा पहिचंदया पडिसूरया इंदधण उदगमच्छा कविहसिया अमोहा वासा वासधरा गामा णगरा घरा पठवता पायाला भवणा निरया रयणप्पमा सक्करप्पभा वालयप्पमा पंकप्पभा धमप्पभा तमा तमतमा सोहम्मे ईसाणे जाव आणए पाणए आरणे अच्चए गेवेज्जे अणुत्तरोववाइया ईसीपम्भारा परमाणुपोग्गले दुपदेसिए जाव अणंतपदेसिए / से तं साविपारिणामिए [241 प्र.] भगवन् ! सादिपारिणामिकभाव का क्या स्वरूप है ? [249 उ.] आयुष्मन् ! सादिपारिणामिकभाव के अनेक प्रकार हैं / जैसे-- जीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण तंदुल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या, गंधर्वनगर / 124 तथा ___ उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्धात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्धात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोध, वर्ष (भरतादि क्षेत्र), वर्षधर (हिमवानादि पर्वत), ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तम:प्रभा, तमस्तमःप्रभा, सौधर्म, ईशान, यावत् प्रानत, प्राणत, पारण, अच्युत, ग्रैवेयक, अनुत्तरोपपातिक देवविमान, ईषत्प्रागभारा पृथ्वी, परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध सादिपारिणामिकभाव रूप हैं / 250. से कि अणादिपारिणामिए ? अणादिपारिणामिए धम्मस्थिकाए अधम्मस्थिकाए आगासस्थिकाए जीवस्थिकाए पोग्गल स्थिकाए अद्धासमए लोए अलोए भवसिद्धिया अभवसिद्धिया / से तं अणादिपारिणामिए / से तं पारिणामिए / [250 प्र. भगवन् ! अनादिपारिणामिकभाव का क्या स्वरूप है ? [250 उ. आयुष्मन् ! धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय, लोक, अलोक, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, ये अनादि पारिणामिक हैं / यह पारिणामिकभाव का स्वरूप है / विवेचन--सूत्र में पारिणामिक भाव का निरूपण किया है। वह सादि और अनादि के भेद से दो प्रकार का है। पारिणामिकभाव का लक्षण व विशेषता- द्रव्य के मूल स्वभाव का परित्याग न होना और पूर्व अवस्था का विनाश तथा उत्तर अवस्था की उत्पत्ति होती रहना परिणमन-परिणाम है। अर्थात् स्वरूप में स्थित रहकर उत्पन्न तथा नष्ट होना परिणाम है। ऐसे परिणाम को अथवा इस परिणाम से जो निष्पन्न हो उसे पारिणामिक कहते हैं। पारिणामिकभाव के कारण ही जिस द्रव्य का जो स्वभाव है, उसी रूप में उसका परिणमनपरिवर्तन होता है / अर्थात् प्रत्येक द्रव्य में स्वभावस्थ रहते हुए ही परिवर्तन होता है। वह न तो सर्वथा तदवस्थ नित्य है और न सर्वथा क्षणिक ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy