SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 166) / अनुयोगवारसूत्र चारित्रमोहनीयकर्म के क्षयोपशम से तथा चारित्राचारित्रलब्धि (देशचारित्रलब्धि) अनन्तानुबंधी एवं अप्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से प्राप्त होती है / दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य लब्धि दानान्तराय आदि पांच अन्तरायकर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होने के कारण क्षयोपशमनिष्पन्न हैं। पंडितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि एवं बालपंडितवीर्यलब्धि की प्राप्ति वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशम से होती है / श्रोत्रेन्द्रिय से लेकर स्पर्शनेन्द्रिय तक की पांच इन्द्रियलब्धियां भावेन्द्रिय की अपेक्षा जानना चाहिये / वे मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षदर्शनावरण के क्षयोपशम से होती हैं / इसी प्रकार प्राचारांग प्रादि बारह अंगों को धारण करने और वाचक रूप लब्धियां श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम से होती हैं / अतः ये क्षायोपशमिक हैं। क्षायोपशमिक और उपशमभाव में अन्तर-क्षय और उपशम का संयोगज रूप क्षयोपशम है। उदयप्राप्त कर्म का क्षय और अनुदीर्ण उसी कर्म का विपाक की अपेक्षा से उदयाभाव इस प्रकार के क्षय से उपलक्षित उपशम क्षयोपशम कहलाता है। यही स्थिति औपशमिकभाव की भी है / वहाँ भी उदयप्राप्त कर्म का सर्वथा क्षय और अनुदयप्राप्त कर्म का न क्षय और न उदय किन्तु उपशम है / इस प्रकार सामान्य से दोनों में कोई अन्तर प्रतीत नहीं होता है। फिर भी दोनों में अन्तर है। वह यह कि क्षयोपशमभाव में कम का जो उपशम है वह विपाक को अपेक्षा से है, प्रदेश को अपेक्षा से नही। क्योंकि प्रदेश की अपेक्षा से तो वहाँ कर्म का उदय रहता है। परन्त गोपशमिकभाव में विपाक और प्रदेश दोनों की अपेक्षा उपशम जानना चाहिये। औपशमिकभाव में कर्म का न विपाकोदय होता है और न प्रदेशोदय ही होता है। इसीलिये क्षायोपशमिक और औपशमिक ये दोनों पृथक्-पृथक् भाव माने गये हैं। पशम ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय इन चार धाति कर्मों का ही होता है, अन्य कर्मों का नहीं, जब कि करणसाध्य उपशम सिर्फ मोहनीयकर्म का ही होता है / इस प्रकार से क्षायोपशमिकभाव की वक्तव्यता जानना चाहिये / पारिणामिकभाव 248. से कि तं पारिणामिए ? पारिणामिए बुबिहे पण्णत्ते / तं जहा-सादिपारिणामिए य 1 अणादिपारिभामिए य 2 / | 248 प्र] भगवन् ! पारिणामिकभाव किसे कहते हैं ? [248 उ.] आयुष्मन् ! पारिणामिकभाव के दो प्रकार हैं। यथा- 1. सादिपारिणामिक, 2. अनादिपारिणामिक / 249. से कि तं सादिपारिणामिए ? सादिपारिणामिए अणेगविहे पण्णसे / तं जहा जुण्णसुरा जुग्णगुलो जुण्णधयं जुण्णतंदुला चेव / अम्मा य अउभरुक्खा संझा गंधवणगरा य // 24 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy