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________________ 'नामाधिकार निरूपण [161 243. से कि तंखए ? खए अट्ठण्हं कम्मपगडीणं खएणं / से तं खए / [243 प्र.) भगवन् ! क्षय-क्षायिक भाव किसे कहते हैं ? [243 उ.] अायुप्मन् ! पाठ कर्मप्रकृतियों के क्षय से होने वाला भाव क्षायिक है। 244. से कि तं खयनिष्फण्णे ? खनिम्फण्णे अगविहे पण्णत्ते / तं जहा.- उप्पण्णणाणदसणधरे-अरहा जिणे केवली खीणआभिणिबोहियणाणावरणे खोणसुयणाणावरणे खोणओहिणाणावरणे खीणमणपज्जवणाणावरण खोणकेवलणाणावरणे अणावरणे णिरावरणे खीणावरणे णाणावरणिज्जकम्मविप्पमुक्के, केवलदंसी सम्वदंसी खोणनिद्दे खीणनिहानिद्दे खोणपयले खीणपयलापयले खीणथीणगिद्धे खोणचक्खुदसणावरणे खोणअचक्खसणावरणे खोणओहिदसणावरणे खीणकेवलदसणावरणे अणावरणे निरावरणे खीणावरणे दरिसणावरणिज्जकम्मविप्पमुक्के, खीणसायवेय णिज्जे खीणअसायवेयणिज्जे अवेयणे निव्वेयणे खीणवेयणे सुभाऽसुभवेयणिज्जकम्मविप्पमुक्के, खीणकोहे जाव खीणलोभे खीणपेज्जे खीणदोसे खीणदंसणमोहणिज्जे खीणचरित्तमोहणिज्जे अमोहे निम्मोहे खीणमोहे मोहणिज्जकम्मविष्पमुक्के, खोणणेरइयाउए खीणतिरिक्खजोणियाउए खोणमणुस्साउए खीणदेवाउए अगाउए निराउए खीणाउए आउयकम्मविप्पमुक्के, गति-जाति-सरीरंगोवंग-बंधण-संघात-संघतण-अणेगबोंदिविंदसंघाविप्पमुक्के, खोणसुभनामे खोणासुभणामे अणामे निण्णामे खीणनामे सुभाऽसुभणामकम्मविप्पमुक्के, खीणच्चागोए, खोणणीयागोए अगोए निग्गोए खीणगोए सुभाऽसुभगोत्तकम्मबिष्पमुक्के, खीणदाणंतराए खीणलाभंतराए खीणभोगतराए खीणुवभोगतराए खीणविरियंतराए अणंतराए णिरतराए खोणंतराए अंतराइयकम्मविप्पमुक्के, सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिन्वुए अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे / से तं खयनिप्फण्णे / से तं खइए। [244 प्र.) भगवन् ! क्षयनिष्पन्न क्षायिकभाव का क्या स्वरूप है ? 1244 उ. प्रायुप्मन ! क्षयनिष्पन्न क्षायिकभाव अनेक प्रकार का कहा है। यथा-... उत्पन्नज्ञानदर्शनघोरी, अहंत. जिन, केवली, क्षीणग्राभिनिवोधिक ज्ञानावरण बाला, क्षीणश्रुतज्ञानावरणवाला, क्षीण अवधिज्ञानावरण वाला, क्षीणमनःपर्ययज्ञानावरण वाला, क्षीणकेवलज्ञानावरण वाला, अविद्यमान आवरण वाला, निरावरण वाला, श्रीणावरण वाला, ज्ञानावरणीयकर्मविप्रमुक्त, केवलदर्शी, सर्वदर्शी, क्षीणनिद्र, क्षीणनिद्रानिद्र, क्षीणप्रचल, क्षीणप्रचलाप्रचल, क्षीणस्त्यानगृद्धि, क्षीणचक्षुदर्शनावरण वाला, क्षोण प्रचक्षुदर्शनावरण वाला, क्षीणवधिदर्शनावरण वाला, क्षीणकेवलदर्शनावरण वाला, अनावरण, निरावरण, क्षीणावरण, दर्शनावरणीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणसातावेदनीय, क्षीणअसातावेदनीय, अवेदन, निर्वेदन, क्षीणवेदन, शुभाशुभ-वेदनीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणक्रोध यावत् क्षीणलोभ, क्षीण राग, क्षीणद्वेष, क्षीणदर्शनमोहनीय, क्षीणचारित्रमोहनीय, अमोह, निर्मोह, क्षीगमोह, मोहनीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणनरकायुष्क, क्षीणतिर्यंचायुष्क, क्षीणमनुष्यायुष्क, क्षीणदेवायुष्क, अनायुष्क, निरायुक, क्षीणायुष्क, प्रायुकर्मविप्रमुक्त, गति-जाति-शरीर-अंगोपांग-बंधन-संघात-संहनन-अनेकशरीरवृन्दसंघातविप्रमुक्त, क्षीण-शुभनाम, क्षीण-सुभगनाम, अनाम, निर्नाम, क्षीणनाम, शुभाशुभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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