________________ नानाधिकार निरूपण] 1A59 ये सब भाव कर्म के उदय से जीव में ही निष्पन्न होते हैं / जैसे कि गतिनामकर्म के उदय से मनुष्यगति आदि गतियां उत्पन्न होती हैं और इन गतियों का उदय होने पर जीव मनुष्य, तिर्यंच आदि कहलाता है। इसी प्रकार कोधादि चारों कषायों का उदय कषाय चारित्रमोहनीयकर्मजन्य है तथा नोकषायचारित्रमोहनीय का उदय होने पर स्त्री प्रादि वेदत्रिक, हास्यादि नोकषाय निष्पन्न होते हैं / मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से मिथ्यादर्शन और ज्ञानावरण के उदय से अज्ञान होता है। लेश्याएं कषायानुरंजित योगप्रवृत्ति रूप हैं और योग शरीरनामकर्म के उदय के फल हैं। चारित्रमोहनीय के सर्वघातिस्पर्धकों के उदय से असंयतभाव तथा किसी भी कर्म का उदय रहने तक असिद्धत्वभाव एवं संसारस्थत्वभाव होता है। इसी प्रकार कर्मोदय से जीव में जो भी अन्य पर्याय निष्पन्न हों, वे सब जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव रूप हैं / सूत्रकार द्वारा सूत्र में जीवोदयनिष्पन्न के रूप में किये गये कतिपय नामों का उल्लेख उपलक्षण मात्र है / अत: इनके समान ही निद्रा, निद्रानिद्रा प्रादि निद्रापंचक प्रति जो भी जीव के स्वाभाविक गुणों के घातक कर्म हैं, उन सबके उदय से उत्पन्न पर्यायों को जीवोदयनिष्पन्न प्रौदयिकभावरूप समझना चाहिये। ___ अजीबोदयनिष्पन्न औदयिकभाव के भी अनेक प्रकार बताये हैं। जैसे औदारिक आदि शरीर / इन शरीरादि को अजीवोदयनिष्पन्न औदायिकभाव इसलिये कहा है कि यद्यपि नारकत्व आदि पर्यायों की तरह प्रौदारिक आदि शरीर भी जीव के होते हैं, लेकिन औदारिक आदि शरीरनामकर्मों का विपाक मुख्यतया शरीर रूप परिणत पुद्गलों में होने से इन्हें पुद्गलविपाकी प्रकृतियों में परिगणित किया है और पुद्गल अजीव है / अतः इनको अजीवोदयनिष्पन्न प्रौदयिकभाव रूप माना जाता है। औपमिकभाव 239. से कि तं उवसमिए ? उवसमिए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-उवसमे य 1 उवसमनिटफण्णे य 2 / (239 प्र.] भगवन् ! औपशमिकभाव का क्या स्वरूप है ? [239 उ.| आयुष्मन् ! प्रौपशमिकभाव दो प्रकार का है / वह इस प्रकार ---1. उपशम और 2. उपशमनिष्पन्न / 240. से कि तं उवसमे ? उबसमे मोहणिज्जस्स कम्मस्स उवसमेणं / से तं उवसमे / [240 प्र.] भगवन् ! उपशम (ौपशमिक) का क्या स्वरूप है ? [240 उ. आयुष्मन् ! मोहनीयकर्म के उपशम से होने वाले भाव को उपशम (पौषशमिक) भाव कहते हैं। 241. से किं तं उसमनिप्फण्णे? उवसमनिष्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते। तं जहा---उवसंतकोहे जाव उवसंतलोभे उपसंतपेज्जे उपसंतदोसे उवसंतदंसणमोहणिज्जे उवसंतचरितमोहणिज्जे उवसंतमोहणिज्जे उपसभिया सम्मत्तलद्धी उपसमिया चरित्तलद्धी उवसंतकसायछउमत्थवीतरागे / से तं उवसमनिष्फण्णे / से तं उपसमिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org