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________________ पश्य अनुयोगहार सूत्र जीवोपयनिष्पन्न औदयिकभाव 237. से कि तं जीवोक्यनिष्फन्ने ? जीवोदयनिष्फन्ने अणेगविहे पण्णत्ते / तं जहा-गेरइए तिस्विखजोणिए मणुस्से वेवे, पुढविकाइए जाव वणस्सइकाइए, तसकाइए, कोहकसायी जाव लोहकसायी, इत्थीवेदए पुरिसवेदए णपुंसमवेदए, कण्हलेसे एवं नील० काउ० तेउ० पम्ह० सुक्कलेसे, मिच्छादिट्ठी अविरए अण्णाणी आहारए छउमत्थे सजोगी संसारत्थे असिद्धे / से तं जीवोदयनिष्फन्ने। |237 प्र.] भगवन् ! जीवोदयनिष्पन्न प्रौदायिकभाव का क्या स्वरूप है ? [237 उ.] अायुष्मन् ! जीवोदयनिष्पन्न प्रौदयिकभाव अनेक प्रकार का कहा गया है। यथा-नैरयिक, निर्यचयोनिक, मनुष्य, देव, पृथ्वीकायिक यावा वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुसकवेदी, कृष्णलेश्यी, नील-कापोत-तेज-पद्मशुक्ललेश्यी, मिथ्यादृष्टि, अविरत, अज्ञानी, याहारक, छद्मस्थ, सयोगी, संसारस्थ, प्रसिद्ध / यह जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव का स्वरूप है। अजीवोदयनिष्पन्न प्रौदयिकभाव 238. से कि तं अजीवोदय निष्फन्ने ? अजीवोदयनिष्फन्ने चोद्दस विहे पण्णत्ते / तं जहा- ओरालियं वा सरीरं 1 ओरालियसरीरपयोगपरिणामियं वा दब्बं 2 वेउम्वियं वा सरीरं 3 वेउब्वियसरीरपयोगपरिणामियं वा दम्ब 4 एवं आहारगं सरीरं 6 तेयगं सरीरं 8 कम्मग सरोरं च भाणियध्वं 10 पयोगपरिणामिए वणे 11 गंधे 12 रसे 13 फासे 14 / से तं अजीवोदयनिष्फण्ण / से तं उदयनिष्फण्णे / से तं उदए। [238 प्र. भगवन् ! अजीवोदयनिष्पन्न यौदयिकभाव का क्या स्वरूप है ? |238. उ.] अायुष्मन् ! अजीवोदय निष्पन्न प्रौदयिकभाव चौदह प्रकार का कहा है / यथा१. औदारिकशरीर, 2. औदारिकशरीर के व्यापार से परिणामितगहीत द्रव्य, 3. वैक्रियशरीर, 4. वैविक्रशरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य, इसी प्रकार 5-6 आहारकशरीर और आहारकशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य, 7-8 तैजस शरीर और तैजसशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य, 9-10 कार्मणशरीर और कार्मणशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य तथा 11-14 पांचों शरीरों के व्यापार से परिणामित वर्ण, गंध, रस, स्पर्श द्रव्य / / इस प्रकार से यह अजीवोदयनिष्पन्न यौदयिकभावः तथा उदयनिष्पन्न और औदयिक दोनों प्रकार के प्रौदयिकभावों की प्ररूपणा जानना चाहिये। विवेचन-इन दो सूत्रों में जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न प्रौदयिकभाव' का निरूपण किया है / कर्मों के उदय से जीव में उदित होने वाला भाव जीवोदयनिष्पन्न और अजीव के माध्यम से उदित होने काला भाव अजीवोदयनिष्पन्न प्रौदयिकभाव है। जीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव में नारक आदि चार गतियां, क्रोधादि चार कषाय, तीन वेद, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, छह लेण्यायें, असंयम, संसारित्व, प्रसिद्धत्व आदि परिगणित किये गये हैं, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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