________________ नामाधिकार निरुपण [157 5. पारिणामिकभाव-अमुक-अमुक रूप से वस्तुधों का परिणमन होना परिणाम और यह परिणाम ही पारिणामिकभाव है / अथवा उस परिणाम से जो भाव उत्पन्न होता है वह पारिणामिकभाव है / अथवा जिसके कारण मूल वस्तु में किसी प्रकार का परिवर्तन न हो, वस्तु का स्वभाव में ही परिणत होते रहना पारिणामिकभाव है। 6. सान्निपातिकभाव-इन पांचों भावों में से दो-तीन आदि भावों का मिलना सन्निपात है, यह सन्निपात ही सानिपातिकभाव है। अथवा इस सन्निपात से जो भाव उत्पन्न होता है. वह सान्निपातिकभाव कहलाता है। अब इन भावों का विस्तार से स्वरूप निरूपण करते हैं। औदयिकभाव 234. से कि तं उदइए? उदइए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–उदए य 1 उदयनिष्फण्णे य 2 / [234 प्र. भगवन् ! औदयिक भाव का क्या स्वरूप है ? [234 उ. | आयुष्मन् ! औदायिकभाव दो प्रकार का है। जैसे--१. प्रौदयिक और 2. उदयनिष्पन्न / 235. से कि तं उदए ? उदए अढण्हं कम्मपगडीणं उदएणं / से तं उदए। [235 प्र. भगवन् ! प्रौदयिक का क्या स्वरूप है ? [235 उ.] अायुष्मन् ! ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला औदयिकभाव है। 236. से कि तं उदयनिष्फरणे ? उदयनिष्फण्णे दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-जीवोदयनिष्फन्ने य 1 अजीवोदयनिष्फन्ने य 2 / [236 प्र.] भगवन् ! उदयनिष्पन्न प्रौदयिकभाव का क्या स्वरूप है ? [236 उ.] आयुष्मन् ! उदयनिष्पन्न औदयिकभाव के दो प्रकार हैं--१. जीवोदयनिष्पन्न, 2. अजीवोदयनिष्पन्न / विवेचन-ये तीन सूत्र औदयिकभाव निरूपण की भूमिका हैं। ज्ञानावरणादि पाठ कर्मों का और कर्मों के उदय से होने वाला भाव-पर्याय औदयिकभाव है। इन दोनों भेदों में परस्पर कार्यकारणभाव है। ज्ञानावरण आदि पाठ कर्मों का उदय होने पर तज्जन्य अवस्थायें उत्पन्न होने से कर्मोदय कारण है और तज्जन्य अवस्थायें कार्य हैं एवं उन-उन अवस्थाओं के होने पर विपाकोन्मुखी कर्मों का उदय होता है, इस दृष्टि से अवस्थायें कारण हैं और विपाकोन्मुख कर्मोदय कार्य है। . उदयनिष्पन्न के जीवोदयनिष्पन्न और अजीवोदयनिष्पन्न भेद मानने का कारण यह है कि कर्मोदय के जीव और अजीव यह दो माध्यम हैं / अत: कर्मोदयजन्य जो अवस्थायें साक्षात् जीव को प्रभावित करती हैं अथवा कर्म के उदय से जो पर्याय जीव में निष्पन्न होती हैं, वे जीवोदयनिष्पन्न और अजील के माध्यम से जिन अवस्थाओं का उदय होता है, वे अजीवोदय निष्पन्न औदयिकभाव हैं। .: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org