________________ 154 [अमुयोगास्सूध [230 प्र.] भगवन् ! प्रकृतिनिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [230 उ.] अायुष्मन् ! अग्नी एनौ, पटू इमो, शाले एते, माले इमे इत्यादि प्रयोग प्रकृतिनिष्पन्न नाम हैं। 231. से कि तं विकारेणं ? विकारेणं दण्डस्य अग्रं दण्डानम्, सा आगता साऽऽगता, दधि इदं दधीदम्, नदी ईहते मदोहते, मषु उदकं मधूदकम्, बहु ऊहते बहूहते / से तं विकारेणं / से तं चउणामे / [231 प्र. भगवन् ! विकारनिष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है ? [231 उ.] अायुष्मन् ! दण्डस्स+ अग्रं---दण्डाग्रम, सा+पागता--साऽऽगता, दधि+ इदंदधीदं, नदी + ईहते नदीहते, मधु + उदकं- मधूदक, बहु+ऊहते-बहूहते, ये सब विकारनिष्पन्ननाम हैं। इस प्रकार से यह चतुर्नाम का स्वरूप है। विवेचन---सूत्र 227 से 231 तक पांच सूत्रों में आपेक्षिक निष्पन्नताओं द्वारा चतुर्नाम का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। पागम, लोप, प्रकृति और विकार इन चार कारणों से निष्पन्न होने से चतुर्नाम के चार प्रकार हैं / इन अागमनिष्पन्न आदि के लक्षण इस प्रकार हैं आगमनिष्पन्न-किसी वर्ण के प्रागम--प्राप्ति से निष्पन्न पद पागमनिष्पन्न कहलाते हैं। जैसे पद्मानि इत्यादि / इनमें 'ध्रुट्स्वराद् घुटि नु: (कातंत्रव्याकरण सूत्र 24) सूत्र द्वारा आगम का विधान होने से पदमानि आदि शब्द प्रागमनिष्पन्न के उदाहरण हैं। इसी प्रकार 'संस्कार इत्यादि शब्दों के लिये जानना चाहिये कि इनमें सुट का आगम होने से 'संस्कार' यह आगमनिष्पन्न नाम हैं। लोपनिष्पन्न-किसी वर्ण के लोप-अपगम से जो शब्द निष्पन्न होते हैं उन्हें लोपनिष्पन्ननाम कहते हैं। जैसे ते+यत्र-तेऽत्र इत्यादि / इन शब्दों में 'एदोत्परः पदान्ते' (कातंत्रव्याकरण सूत्र 115) सूत्र द्वारा प्रकार का लोप होने से यह लोपनिष्पन्न नाम हैं। इसी प्रकार मनस् + ईषा-मनीषा (बुद्धि), भ्रमतीति 5 : इत्यादि शब्द सकार, मकार आदि वर्गों के लोप से निष्पन्न होने के कारण लोपनिष्पत्रनाम हैं। प्रकति निष्पन्न- जो प्रयोग जैसे हैं उनका वैसा ही रूप रहना प्रकृतिभाव है / अतः जिन प्रयोगों में प्रकृतिभाव होने से किसो प्रकार का विकार (परिवर्तन) न होकर मूल रूप में ही रहते हैं, उन्हें प्रकृतिनिष्पत्रनाम कहते हैं। ये प्रयोग व्याकरणिक विभक्ति आदि से संयुक्त होते हैं / जैसे—'अग्नी एतौ' इत्यादि शब्द / यहाँ 'द्विवचनमनो' (का. सू. 62) सूत्र द्वारा प्रकृतिभाव का विधान किये जाने से सन्धि नहीं हुई / यह प्रकृतिनिष्पन्ननाम का उदाहरण है / विकारनिष्पन्न-किसी वर्ण का वर्णान्तर के रूप में होने को विकार कहते हैं / विकार से निष्पन्न होने वाला नाम विकार निष्पन्ननाम कहलाता है। अर्थात् जिस नाम में किसी एक वर्ण के स्थान पर दूसरे वर्ण का प्रयोग होता है वह विकारनिष्पन्ननाम है। जैसे 'द इस्य + अग्रम् --दंडाग्रम्' आदि / इन उदाहरणों में, 'समानः सवर्णे दीर्धीभवति परश्च लोपम् (का. 24) सूत्र द्वारा आकार रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org