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________________ नामाधिकार निरूपण [153 जिन शब्दों के अन्त में अं, इं या उं वर्ण हो, उनको नपुंसकलिंग वाला समझना चाहिये / अब इन तीनों के उदाहरण कहते हैं ! // 20 // आकारान्त पुरुप नाम का उदाहरण राया (राजा) है। ईकारान्त का उदाहरण गिरी (गिरि) तथा सिहरी (शिखरी) हैं / ऊकारान्त का उदाहरण विण्हू (विष्णु) और ओकारान्त का दुमो (द्रुमो-वृक्ष) है / / 21 / / स्त्रीनाम में 'माला' यह पद प्राकारान्त का, सिरी (श्री) और लच्छी (लक्ष्मी) पद ईकारान्त, जम्बू (जामुन वृक्ष), वह (वधू ) ऊकारान्त नारी जाति के (नामों के) उदाहरण हैं / / 22 / / धन्न (धान्य) यह प्राकृनपद अंकारान्त नपुंसक नाम का उदाहरण है / अच्छि (अक्षि) यह इंकारान्त नपुसकनाम का नया पीलु (पोलु-वक्ष विशेष) महं (मधु) ये उंकारान्त नपुंसकनाम के पद इस प्रकार यह त्रिनाम का स्वरूप है। विवेचन--सूत्र में प्रकारान्तर से त्रिनाम का स्वरूप स्पष्ट किया है / द्रव्यादि सम्बन्धी नाम स्त्री, पुरुष और नपंसकलिंग के भेद से तीन प्रकार के हैं और इन तीनों लिंगों का बोध उन-उन नामों के अन्त में प्रागत प्राकारादि वर्णों द्वारा होता है। प्राकृत भाषा की तरह संस्कृत में भी लिंगापेक्षया शब्दों के तीन प्रकार हैं, लेकिन हिन्दी में पुरुष और स्त्री लिंग शब्द ही माने गये हैं / अतः हिन्दी में त्रिनामता नहीं है। इस प्रकार व्याकरणशास्त्र की दृष्टि से लिंगानुसार यह त्रिनाम का स्वरूप जानना चाहिये। चतुर्नाम 227. से कि तं चतुणामे ? चतुणामे चउविहे पण्णत्ते / तं जहा—आगमेणं 1 लोवेणं 2 पयईए 3 विगारेणं 4 / | 227 प्र. भगवन् ! चतुर्नाम का क्या स्वरूप है ? [227 उ.] आयुष्मन् ! चतुर्नाम के चार प्रकार हैं / यथा--१. प्रागमनिष्पन्ननाम 2. लोपनिष्पन्न नाम 3. प्रतिनिष्पन्न नाम 4. विकारनिष्पन्न नाम / 228. से कि तं आगमेणं ? | आगमेणं पमानि पयां सि कुण्डानि / से तं आगमेणं / [228 प्र.] भगवन् ! आगमनि पन्ननाम का क्या स्वरूप है ? [228 उ.] अायुष्मन् ! पद्मानि, पयासि, कुण्डानि प्रादि ये सब प्रागमनिष्पन्ननाम हैं। 229. से कि तं लोवेणं? लोवेणं ते अत्र तेऽत्र, पटो अत्र पटोऽत्र, घटो अत्र घटोऽत्र, रथो अत्र रथोऽत्र / से तं लोवेणं / [229 प्र.] भगवन् ! लोपनिष्पन्न नाम का क्या स्वरूप है ? [229 उ.] अायुप्मन् ! ते+अत्र-तेऽत्र, पटो+अत्र---पटोऽत्र, घटो+अत्र घटोऽत्र, रथो+ अत्र---रथोऽत्र, येलोपनापन्ननाम हैं / 230. से कि तं पगतीए ? अग्नी एतौ, पटू इमो, शाले एते, माले इमे / से तं पगतीए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003500
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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