________________ 152] [अनुयोगद्वारसूत्र इन चार स्पर्शों में से भी एक समय में अविरोधी दो स्पर्श तथा एक वर्ण, एक गंध, एक रस, इस प्रकार कुल पाँच गुण और उनके पर्याय सम्भव हैं। ये वर्ण आदि गुण मूर्त वस्तु---पुद्गल से कभी विलग नहीं होते हैं किन्तु इनके एक, दो आदि रूप अंश रूपान्तरित होते रहते हैं। तभी द्रव्य के प्रवस्थान्तर होने का बोध होता है। जैसे किसी परमाणु में सर्वजधन्य (एकगुण) कृष्णादि गुण हैं, वे दो अंश कृष्णादि गुणों के आने पर निवृत हो जाते हैं / इसीलिये कृष्णादि गुणों के ये एक. दो, तीन यावत् संख्यात, असंख्यात और अनन्त अंश सब पर्याय पुद्गलास्तिकाय के गुण-पर्यायों का उल्लेख क्यों ? जैसे ये वर्ण, गंध आदि गुण और इनके अंश रूप पर्याय पुद्गलास्तिकाय में पाए जाते हैं, उसी प्रकार धर्मास्तिकाय आदि में भी गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व श्रादि गुण और प्रत्येक में अनन्त अगुरुलघु रूप पर्याय पाए जाते हैं। परन्तु अमूर्त होने से उनका उल्लेख नहीं करके इन्द्रिय-प्रत्यक्ष होने से पुद्गल की द्रव्य, गुण और पर्यायरूपता का ही यहाँ उल्लेख किया है। इस प्रकार द्रव्य, गुण और पर्याय के भेद से विनाम की व्याख्या करने के बाद अब प्रकारान्तर से पुनः त्रिनाम की एक और व्याख्या करते हैं / त्रिनाम की व्याख्या का दूसरा प्रकार 226. तं पुण णाम तिविहं इत्थी 1 परिसं 2 णपुसगं 3 चेव / एएसि तिण्हं पि य अंतम्मि परूवणं वोच्छं // 18 // तत्थ पुरिसस्स अंता आ ई ऊ ओ य होंति चत्तारि / ते चेव इत्थियाए हवंति ओकारपरिहीणा // 19 // अं ति य इं ति य उ ति य अंता उ णपुसगस्स बोद्धव्वा / एतेसि तिण्हं पि य वोच्छामि निसणे एत्तो // 20 // आकारंतो राया ईकारंतो गिरी य सिहरी य / ऊकारंतो विण्ह दुमो ओअंताओ परिसाणं // 21 // आकारता माला ईकारंता सिरी य लच्छी य / ऊकारंता जंबू वह य अंता उ इत्थीणं // 22 // अंकारतं धन्नं इंकारतं नसकं अच्छि / उंकारंतं पीलु महुं च अंता णपुसाणं / / 23 / / से तं तिणामे। [226] उस त्रिनाम के पुनः तीन प्रकार हैं / जैसे-१ स्त्रीनाम 2 पुरुषनाम और 3 नपुंसकनाम / इन तीनों प्रकार के नामों का बोध उनके अन्त्याक्षरों द्वारा होता है। / / 18 / / पुरुषनामों के अंत में 'पा, ई, ऊ, ओ' इन चार में से कोई एक वर्ण होता है तथा स्त्रीनामों के अंत में 'ओ' की छोड़कर शेष तीन (ग्रा, ई, ऊ) वर्ण होते हैं / / 19 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org