________________ नामाधिकार निरूपण] 151 और जो भी भिन्न-भिन्न प्राकृतियां सम्भव हैं, उनका इन्हीं में अन्तर्भाव हो जाने से पांच से अधिक मौलिक संस्थान सम्भव नहीं हैं। इस प्रकार से गुणनाम की वक्तव्यता का प्राशय जानना चाहिये / पर्यायनाम 225. से कि तं पज्जवनामे ? पज्जवनामे अणेगविहे पण्णते। तं जहा--एगगुणकालए दुगुणकालए जाव अणंतगुणकालए, एगगुणनोलए दुगुणनोलए जाव प्रणतगुणनीलए, एवं लोहिय-हालिद्द-सुक्किला वि भाणियव्वा / एगगुणसुरभिगंधे दुगुणसुरभिगंधे जाव अणंतगुणसुरभिगंधे एवं दुरभिगंधो बि भाणियब्वो। एगगुणतित्ते दुगुणतित्ते जाव अणंतगुणतित्ते, एवं काय-कसाय-अंबिल-महुरा वि भाणियब्वा / एगगुणकक्खडे दुगुणकक्खडे जाव अणंतगुणकक्खडे, एवं मउय-गरुय-लहुय-सीत-उसिण-गिद्धलुक्खा वि भाणियव्वा / से तं पज्जवणामे / [225 प्र.| भगवन् ! पर्यायनाम का क्या स्वरूप है ? [225 उ.] अायुष्मन् ! पर्यायनाम के अनेक प्रकार हैं। यथा-एकगुण (अंश) काला, द्विगुणकाला यावत् अनन्तगुणकाला, एकगुणनीला, द्विगुणनीला यावत् अनन्तगुणनीला तथा इसी प्रकार लोहित (रक्त), हारिद्र (पीत) और शुक्लवर्ण की पर्यायों के नाम भी समझना चाहिए / एकगुणसुरभिगंध, द्विगुणसुरभिगंध यावत् अनन्तगुणसुरभिगंध, इसी प्रकार दुरभिगंध के विषय में भी कहना चाहिए / - एकगुणतिक्त, द्विगुणतिक्त यावत् अनन्तगुणतिक्त, इसी प्रकार कटुक, कषाय, अम्ल एवं मधुर रस की पर्यायों के लिये भी कहना चाहिए। एकगुणकर्कश, द्विगुणकर्कश यावत् अनन्तगुणकर्कश, इसी प्रकार मृदु, गुरु, लघु, शीत, उरण, स्निग्ध, रूक्ष स्पर्श की पर्यायों की वक्तव्यता है। यह पर्यायनाम का स्वरूप है। विवेचन--सूत्र में पर्यायनाम की व्याख्या की है। पर्याय का स्वरूप पहले बताया जा चुका है। पर्याय द्रव्य के समान सर्वदा स्थायी-ध्र व रूप न होकर उत्पत्ति-विनाश रूपों के माध्यम से परिवर्तित होती रहती है। प्रस्तुत प्रसंग में गुणों को माध्यम बनाकर पर्याय का स्वरूप बताया है / पर्याय एकगुण (अंश) कृष्ण प्रादि रूप है। अर्थात जिस परमाणु आदि द्रव्य में कृष्णगुण का एक अंश हो वह परमाणु आदि द्रव्य एकगुणकृष्णवर्ण आदि वाला है। इसी प्रकार दो आदि अंश से लेकर अनन्त अंशों तक के लिये जानना चाहिये / ये सभी अंश पर्याय हैं। पुदगलास्तिकाय के दो भेद हैं-- अणु और स्कन्ध / इनमें से स्कन्धों में तो पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस और पाठ स्पर्ण कुल मिलाकर बोस गुण और परमाणुओं में कर्कश, मृदु, गुरु, लघु ये चार स्पर्श नहीं होने से कुल सोलह गुण पाये जाते हैं तथा एक परमाणु में शेष रहे शीत-उष्ण, स्निग्ध-रूक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org